Book Title: Namo Purisavaragandh Hatthinam
Author(s): Dharmchand Jain and Others
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh

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Page 17
________________ सम्पादकीय सूत्र, नन्दी सूत्र, प्रश्नव्याकरण सूत्र, बृहत्कल्प सूत्र, अन्तगड़ सूत्र आदि आगमों का सम्पादन एवं व्याख्या-लेखन का कार्य शासन हित की दृष्टि से किया। आप साधुमार्गी समाज में विशिष्ट साहित्य के || निर्माण, मूलागमों के अन्वेषण पूर्ण शुद्ध संस्करण की पूर्ति, सूत्रार्थ का शुद्ध पाठ पढ़कर जनता को ज्ञानातिचार से बचाने एवं आगम-सेवा की दृष्टि से इस ओर प्रवृत्त हुए। आगमों का स्वाध्याय करने की ओर जनसाधारण भी प्रवृत्त हो, इस दृष्टि से आपने दशवैकालिक और उत्तराध्ययन सूत्र का पद्यानुवाद प्रस्तुत किया तथा संस्कृत छाया, हिन्दी शब्दार्थ, विवेचन एवं संबद्ध कथाओं से इन संस्करणों को समृद्ध बनाया। आगम-व्याख्या साहित्य के अतिरिक्त आपका प्रवचन, इतिहास, काव्य, कथा आदि से संबद्ध साहित्य भी उपलब्ध है। आपके अधिकांश प्रवचन असंकलित एवं अप्रकाशित हैं। कतिपय प्रवचन आध्यात्मिक साधना, आध्यात्मिक आलोक, प्रार्थना प्रवचन, गजेन्द्र मुक्तावली (भाग 1 व 2) , गजेन्द्र व्याख्यान माला (भाग 1 से 7) आदि पुस्तकों में संकलित हैं। भागमाघारित. अत्यन्त सहज. प्रेरणाप्रद.रोचक एवं प्रभावशाली हैं। इतिहास को काव्य रूप में प्रस्तुत करने में आप सिद्धहस्त कवि थे। जैनाचार्य चरितावली इसका उदाहरण है। प्राचीन स्रोतों से जैन इतिहास को प्रस्तुत करना आपका लक्ष्य रहा, जो जैनधर्म का मौलिक इतिहास के चार भागों में साकार हआ। काव्य, कथा एवं अन्य साहित्य से आपकी आध्यात्मिक, सैद्धान्तिक एवं कल्याणकारिणी दृष्टि का परिचय मिलता है। चतुर्थ खण्ड के द्वितीय अध्याय में आपके द्वारा रचित पदों, भजनों एवं प्रर्थनाओं का संकलन है, जो आध्यात्मिक उन्नयन एवं जीवन सुधार के भावों से ओत-प्रोत हैं। सामायिक, स्वाध्याय, समाज-एकता, कुव्यसन-त्याग, सेवा,गुरु-भक्ति, महिला-शिक्षा, षट्कर्माराधन आदि विविध विषयों पर भावपूर्ण हृदयावर्जक पदों एवं भजनों की रचना कर आपने जन-जन को जागृत करने का प्रयास किया है। तीर्थकर शांतिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर पर प्रार्थनाएँ, उनके गुणों की ओर आकर्षित करती हैं। 'सतगुरु ने यह बोध बताया', 'समझो चेतन जी अपना रूप', 'मेरे अन्तर भया प्रकाश', 'मैं हूँ उस नगरी का भूप' आदि पद शरीर एवं आत्मा में भिन्नता से साक्षात्कार का स्पष्ट चित्रांकन करते हैं। इस अध्याय में आपकी 61 पद्य रचनाएँ आपके 61 वर्ष के आचार्य काल का स्मरण कराती हैं। पंचम खण्ड परिशिष्ट खण्ड है। प्रथम चार खण्डों में अविभक्त सामग्री का समावेश इस खण्ड में किया गया है। इसमें चार परिशिष्ट हैं- 1. चरितनायक की साधना में प्रमुख सहयोगी साधक महापुरुष 2. चरितनायक के शासनकाल में दीक्षित सन्त-सती 3. कल्याणकारी संस्थाएँ और 4. आचार्यप्रवर के 70 चातुर्मास : एक विवरण। प्रथम परिशिष्ट में पूज्य चरितनायक के गुरुदेव आचार्यप्रवर श्री शोभाचन्द्र जी म.सा., शिक्षा गुरु स्वामीजी श्री हरखचन्द जी म.सा., संघ-व्यवस्थापक श्री सुजानमल जी म.सा., शासन सहयोगी श्री भोजराजजी म.सा. एवं पं. रत्न श्री लक्ष्मीचन्द जी म.सा., महासती श्री बड़े धनकंवर जी म.सा. एवं माता महासती श्री रुपकंवर जी म.सा. के योगदान का संक्षिप्त उल्लेख किया गया है। द्वितीय परिशिष्ट में चरितनायक के शासनकाल में दीक्षित होकर साधना में निरतिचार रूप से संलग्न रहने वाले प्रमुख सन्त-सतियों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। तृतीय परिशिष्ट में उन कल्याणकारी संस्थाओं का परिचय है जो चरितनायक के शासनकाल में सुज्ञ, विवेकशील एवं जागरूक श्रावकों द्वारा उपकार की भावना से स्थापित की गई हैं। अन्तिम परिशिष्ट में चरितनायक पूज्य गुरुदेव के 70 चातुर्मासों की सारिणी है, जिसमें शासनकाल की प्रमुख घटनाओं एवं गच्छ के संतों के चातुर्मासों की भी सूचना संकलित है। प्रस्तुत ग्रन्थ का नाम 'नमो पुरिसवरगंघहत्थीणं' विशेष प्रयोजनवत्ता एवं सार्थकता लिए हुए है। आगम

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