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ब्रह्म, आत्मा और शरीर
[२३ मशीन की भांति है। मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, उसके कर्मचारी हैं, मन इसका मैनेजर (व्यवस्थापक) है, जो सम्पूर्ण व्यवस्था करता है । ये सभी आत्मा रूपी शक्ति से संचालित है। मृत्यु पर आत्मा ही शरीर को अपने से अलग देखता है, शरीर आत्मा को नहीं देखता क्योंकि आत्मा ही दृष्टा है । जीवन की घटनाओं का प्रभाव आत्मा पर नहीं पड़ता, मन, अहंकार आदि पर पड़ता है। वे ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। शक्ति जिम्मेदार नहीं है।
(स) कुण्डलिनी शक्ति
शरीर के भीतर जो ऊर्जा का केन्द्र है उसे "कुण्डलिनी" कहा जाता है । यह शक्ति सुप्तावस्था में है। शरीर को जितनी शक्ति की आवश्यकता है उतनी शक्ति उसे स्वतः मिलती रहती है । यही जीवन ऊर्जा का केन्द्र है। विशेष कार्य के लिए शरीर को अतिरिक्त शक्ति की आवश्यकता होने पर यह यहीं से प्राप्त होती है। सामान्य व्यक्ति इसके १५% का ही उपयोग कर रहा है, बाकी सुप्त पड़ी है। इसको विधिपूर्वक जाग्रत भी किया जा सकता है । हठ योग में इसकी विधियाँ हैं किन्तु वह सामान्य व्यक्ति के लिए उपयुक्त नहीं है।
इस विधि से अचानक विस्फोट के साथ उसका जागरण होता है जिससे पूर्व तैयारी न होने पर मनुष्य पागल भी हो सकता है व मृत्यु भी हो सकती है। अन्य कई सामान्य विधियाँ हैं जिससे धीरे-धीरे इसको जाग्रत किया जा सकता है। अतिरिक्त शक्ति के जागरण से मनुष्य को अतीन्द्रिय ज्ञान होता है। कई व्यक्ति तो इसके २3% का ही उपयोग करके जी रहे हैं।