Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

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Page 95
________________ ६४ ] . मृत्यु ओर परलोक यात्रा की दूरी मिट जाती है। वह बिना ही इन्द्रियों के सीधा मन से देख व सुन सकता है। कल्पना, इसकी संकल्प सम्भावनाएँ हैं। ऐसा व्यक्ति शाप दे सकता है। पुराण इसी शरीर को उपलब्ध व्यक्तियों द्वारा लिखे गये हैं किन्तु उनकी भाषा प्रतीकात्मक होने से वैज्ञानिक उन्हें नहीं समझ पाते। ऐसे ही व्यक्तियों ने प्रेतात्मा को जाना, मृत्यु के बाद जीवात्मा कहाँ जाती है ? कहाँ व कैसे रहती है ? कैसा अनुभव करती है ? कौन इन आत्माओं को ले जाता है ? पुनजन्म कब और कैसे होता है ? गर्भ में जीवात्मा का प्रवेश कब होता है ? स्वर्ग और नरक कहाँ है ? आदि की जानकारी ऐसे ही व्यक्तियों ने दी, जो इस शरीर को सक्रिय कर सके। इस मनस शरीर को जिसने विकसित कर लिया वे मृत्यु उपरांत स्वर्ग और नरक में जाते हैं। चित्त शुद्ध होने पर वे स्वर्ग का अनुभव करते हैं तथा चित्त निकृष्ट होने पर उन्हें नरक की अनुभूति होती है । शुद्ध चित्त वाले दैवयोनि को प्राप्त होते हैं। जिनका सूक्ष्म शरीर ही विकसित है वे पुनः मनुष्य योनि में जन्म लेते हैं। प्रेत दूसरों को हानि ही पहुंचाते हैं, देव • सहायता करते हैं। इन सिद्धियों के प्राप्त होने पर साधक इन्हीं में उलझ जाता है। वह चमत्कार ही दिखाता फिरता है। उसके आगे की अध्यात्म की यात्रा रुक जाती है। वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। ___ योगियों के लिए यही सबसे बड़ी बाधा है कि जिससे योगी बहुत कम आगे पहुंचते हैं। स्त्रियाँ भी इससे आगे नहीं जा

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