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मृत्यु और परलोक यात्रा ज्ञानी के लिए रात्रि या दक्षिणायन काल की कोई बाधा नहीं
है।
____भीष्म पितामह को उत्तरायण काल की प्रतीक्षा इसलिए करनी पड़ी कि वे वसु देवता थे। उन्हें ब्रह्मलोक में नहीं देवलोक में ही जाना था। दक्षिणायन के समय देवलोक में रात्रि रहती है, इसलिए उन्हें उत्तरायण की प्रतिक्षा करनी पड़ी। . ___ ब्रह्मलोक में जाने का संकल्प करने पर वह साधक देवयान मार्ग से ब्रह्मलोक को प्राप्त होता है। ब्रह्मलोक में जाने वाले सभी साधक और उपासक इसी देवयान मार्ग से ही ब्रह्मलोक को जाते हैं। अन्य कोई मार्ग नहीं है। इस मार्ग को अर्चिमार्ग, उत्तरायण मार्ग भी कहते हैं। यह एक ही मार्ग है जो विभिन्न लोकों में होकर जाता है । इन लोकों के अधिमानी पुरुष इन्हें आगे के लोकों में पहुंचा देते हैं। ये सूक्ष्म शरीरधारी देवता होते हैं । ब्रह्मलोक जाने वालों के सूक्ष्म तत्त्व कर्मों की गति के अनुसार विभिन्न लोकों में छिलके की भाँति छूटते जाते हैं व अन्त में ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। ___ साधारण मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार जिस लोक के अधिकारी होते हैं उस लोक में रुक जाते हैं आगे का मार्ग उनके लिए बन्द रहता है।