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पुनर्जन्म और अवतार
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जिसकी पूर्ति हेतु जीवात्मा पुनर्जन्म ग्रहण करता है । जब तक जीवात्मा को ज्ञान द्वारा इन सांसारिक वासनाओं के प्रति वैराग्य नहीं हो जाता तब तक इसे रोका नहीं जा सकता। ___ इसका तीसरा कारण है, जीवात्मा बार-बार जन्म ग्रहण । करके ही उनसे प्राप्त अनुभवों के आधार पर निरन्तर विकास को प्राप्त होती है जिससे कई जन्मों के बाद वह उच्च मानवता को प्राप्त होकर मुक्त हो जाती है जो इस जीवात्मा की अंतिम गति है। इसलिए पुनर्जन्म जीवात्मा की विकास प्रक्रिया के लिए आवश्यक एवं अनिवार्य है। .. कोई भी जीवात्मा एक ही जन्म में पूर्ण विकास नहीं कर सकती। इसलिए प्रकृति ने अनेक, जन्मों की व्यवस्था की है।
मृत्यु के बाद जीवात्मा एक निश्चित अवधि तक अन्तराल में रहती है जिसकी अवधि समाप्त होने पर वह पुनर्जन्म ग्रहण करती है । जीवात्मा अपने जन्म को चुनने में स्वतन्त्र नहीं है। उसके कर्म फलों के भोग के अनुसार दिव्य सत्ताएँ ही इसका चयन करती हैं। पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का अन्तराल अवधि में पाचन होता है। उस पाचन के फलस्वरूप जो कर्म अधिक तीव्र होते हैं उनके अनुसार दैवी शक्तियां उसके कुल, परिवार, क्षेत्र, वातावरण एवं समय का निर्धारण करके उसके अनुकूल पुनर्जन्म का निश्चय करती हैं।
सामान्यतया जिस जीवात्मा का पूर्व जन्म में जिस कुल, वातावरण आदि से सम्बन्ध होता है उसका पुनर्जन्म उसी वातावरण में होता है किन्तु यदि जीवात्मा ने पूर्व जन्म में अधिक विकास कर लिया है तो वह कहीं भी अपने अनुकूल