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साधारण जीवों की परलोक यात्रा
[ १२१ इस लोक में रहकर सत्यलोक की अनुभूति की जा सकती है । यही लोक समस्त सृष्टि का कारण है किन्तु यह भी सीमित है, सीमाबद्ध है। इसकी भी मर्यादा है। यही सत, चित् व आनन्द स्वरूप है। सृष्टि में जितने भी नाम रूप हैं सभी इसी की अभिव्यक्ति है । यह भी इकाई स्वरूप है । यही वेदान्त का "आनन्दमय कोश' है।
(ग) निर्वाण लोक . इसके आगे इस सातवें लोक में क्या है इसका ज्ञान किसी को नहीं है। यह ईश्वर के कल्पनातीत प्रकाश से आच्छादित है । यह ब्रह्म ही है। ब्रह्मलोक तक जीवात्मा की परमात्मा से पृथकता बनी रहती है। ब्रह्म में केवल संकल्प से ही प्रवेश होता है जिससे जीवात्मा का उसमें लय हो जाता है। फिर लौटने का कोई उपाय नहीं है। जो उसमें प्रवेश कर गए वे पुनः लौट कर नहीं आए। इसलिए इसकी कोई जानकारी किसी ने नहीं दी। ब्रह्मलोक तक की जानकारी ही मनुष्य के पास है। __ आत्मलोक तथा निर्वाण लोक का विकास अभी मनुष्य में नहीं हुआ है किन्तु कठिन साधना से इसे प्राप्त किया जा सकता है। इसमें कुछ ही धिकों ने प्रवेश किया है ।
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