Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

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Page 120
________________ साधारण जीवों की परलोक यात्रा [ ११६ हैं । यह निर्वाण चेतना की एक अवस्था है । यहां निर्वाण लोक के पूर्ण मोक्ष का आस्वाद जीवात्मा को मिल जाता है । यह बुद्धि लोक की वेदान्त का " विज्ञानमय" कोश है । यहाँ स्थित महात्माओं का विकास पूर्व कल्पों में ही हो चुका था तथा ये ही जगत की शासन व्यवस्था संभालते हैं जैसे ये ईश्वर के मन्त्री हों । जो देवगण नीचे के लोक की व्यवस्था करते हैं उनके भी ये अधिपति हैं । यह लोक सारे विश्व का हृदय है, जहाँ से प्राण की धाराएँ सब ओर जाती हैं । ब्रह्मा जी कल्पारम्भ में इसी लोक में प्रकट हुए थे और कल्प के अन्त में इसी में विलीन हो जाएँगे । योगी ध्यान द्वारा इस लोक में पहुंचने की चेष्टा करते हैं । यही परम पद है । आत्मिक और बुद्धि लोक में पूर्ण एकता है । यहां सभी प्रकार की भिन्नता एव द्वैत मिट जाता है । यह भेद मनस लोक तक ही रहता है । यहीं पहुंचकर विश्व बंधुत्व का अनुभव होता है । सबमें एक ही अन्तरात्मा है किन्तु विकास की अवस्थाएँ भिन्न-भिन्न हैं, इसका ज्ञान यहीं पहुंचकर होता है। हमारी उत्पत्ति एक ही स्थान से हुई है, एक ही प्रकार से विकास होता है तथा सब एक ही स्थान पर जाना है, केवल आयु का अन्तर है, इसकी भी अनुभूति यहीं पहुंचकर होती है । यह " अक्षर " लोक है । यह सर्वज्ञता और पूर्ण ज्ञान का भण्डार है । यह स्वर्गलोक और आत्मलोक के मध्य है । आत्मज्ञान प्राप्ति से पूर्व जीवात्मा इसी लोक में पहुंचता है । '

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