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मृत्यु और परलोक यात्रा
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(ब) पूर्व जन्म की स्मृति
जो भी इस जन्म में जाना गया है उसकी विस्मृति असंभव ' है क्योंकि शरीर अथवा मन से जो भी कर्म किये जाते हैं, जिन भावनाओं, आकांक्षाओं आदि का मानसिक पोषण किया जाता है उनकी छाप चित्त पर स्थाई रूप से जम जाती है जिसे मिटाने का कोई उपाय नहीं है । विशेष विधि एवं साधना द्वारा ही उसे मिटाया जा सकता है । तभी मनुष्य की जन्ममरण से मुक्ति होती है ।
किन्तु अधिकांश व्यक्तियों को अपने पूर्व जन्म की याद नहीं रहती । इसके कई कारण हैं । सामान्यतया जिस जीवात्मा के अन्तराल की अवधि कम होती है उसे अपने पूर्व जन्म की स्मृति बनी रहती है किन्तु लम्बे अन्तराल के बाद पुनर्जन्म होने पर उसे उसकी याद नहीं रहती क्योंकि उसकी वह स्मृति धूमिल हो जाती है ।
जिस प्रकार दैनिक स्वप्न प्रातः थोड़े समय ही याद रहते हैं फिर व्यक्ति उन्हें भूल जाता है उसी प्रकार नये जन्म पर अपने पूर्व के अन्तराल समय एवं पूर्व जन्म का छः महीने तक सब कुछ याद रहता है ।
इस समय बालक नींद में कभी हँसता है, कभी चमकता है, कभी उसके होंठ हिलते हैं आदि जो उसकी पूर्व जन्म की स्मृतियों के मस्तिष्क में आने से ही होता है । फिर ज्यों-ज्यों इस जीवन का ज्ञान होने लगता है त्यों-त्यों वह पुराने को भूलता जाता है । कुछ लोगों को अधिक समय तक याद रहता है ।