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त्यासाचानक और उसके लाभ
- खक३८ अन्दलाल दशोरा
चित्त की अनियन्त्रित वृत्तियाँ ही संसार में सभी दुःखों का कारण हैं तथा इसी से सभी प्रकार के कुकर्म, दुराचार, अनाचार, अत्याचार आदि होते हैं जिससे व्यक्ति का स्वयं का व्यक्तित्व एवं सम्पूर्ण समाज का वातावरण दूषित हो जाता है । चित्त की इन अनियन्त्रित एवं उच्छखल वृत्तियों को नियन्त्रण में लाने का कार्य योग द्वारा ही सम्भव है। इनके निरोध से एक ओर समाज में सुव्यवस्था आती है तथा दूसरी ओर व्यक्ति अपनी सुप्त शक्तियों एवं क्षमताओं का विकास कर वह आत्मा के प्रकाश से आलोकित हो उठता है । आत्मा का यही प्रकाश उसके मोक्ष का कारण बनता है।
आत्म ज्ञान की साधना
लेखक-नन्दलाल दशोरा आत्मज्ञान का मार्ग पुरुषार्थ का मार्ग है और 'पुरुषार्थ की एक सीमा हैं जहाँ इसकी समाप्ति हो जाती है । अंतिम उपलब्धि प्रसाद रूप में ही होती है जिसकी धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। जिनकी भोगों में रुचि है तथा जिनकी चेतना का अभी विकास नहीं हुआ है उनके लिए यह मार्ग नहीं है लेकिन पाठक इस ज्ञान के आलोक से अवगत होकर अपने जीवन को इस विकास प्रक्रिया में आगे बढ़ा सकें इसी आशा से यह पुस्तक प्रस्तुत की गई है।
रणधीर बुक सेल्स (प्रकाशन) हरिद्वार