Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

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Page 119
________________ ११८ ] मृत्यु और परलोक यात्रा अपने कर्मों तथा उसके 'फलों का भी ज्ञान हो जाता है। यहाँ ब्रह्मा जी की मानसी सृष्टि के आदि रूप भी दिखाई देते हैं। ___ इसकी छठवीं भूमिका में तेजस्वी महापुरुष रहते हैं तथा इससे भी ऊँची सातवीं भूमिका में दीक्षित लोगों का निवास है। यह बुद्धि का स्थान है । स्थूल लोक की सारी बौद्धिक चेष्टाएँ यहीं से होती हैं। यहाँ पहुंचकर अहंकार का भी नाश हो जाता है व जीव ईश्वर की पूर्णता से भर जाता है। यही जीव का निज धाम है जहाँ वह पुनः लौट आता है। ____ मनुष्य जीवन का यात्रा चक्र यहीं तक के लोकों के मध्य निरंतर घूमता रहता है । यह सम्पूर्ण आवागमन चक्र जीवात्मा का जीवन काल है। यह इस स्थूल शरीर तक ही सीमित नहीं है जिसकी मृत्यु पर मनुष्य अपनी मृत्यु समझ लेता है। (क) बुद्धि लोक ___ मन, बुद्धि और आत्मा एक ही ईश्वर के तीन रूप हैं।' जब मनस तल की अवस्था से साधक आगे बढ़ता है तो उस मन का बुद्धि में लय हो जाता है तथा बुद्धि का आत्मा में लय हो जाता है । ये तीन रूप एक के बाद एक प्रकट होते हैं तथा इसके उल्टे क्रम से लय होते हैं। स्वर्ग तक के लोक मनःस्तर तक के ही हैं। इसके पार जाने पर जीव बुद्धि लोक में प्रवेश करता है। यहाँ मानवीय बुद्धि समाप्त हो जाती है तथा ईश्वरीय बुद्धि “प्रज्ञा" का प्राकट्य होता है। इस प्रज्ञा के उदय होने पर आवागमन के बन्धन कट जाते

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