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मृत्यु और परलोक यात्रा
(य) स्वर्गलोक ___ यह लोक मनोलोक से भी अधिक सूक्ष्म परमाणुओं से वना है। कामलोक का वास पूरा होने पर लिंग शरीर वहीं छट जाता है किन्तु कामनाओं के बीज मनोमय कोश में खिंच जाते हैं तथा मनोमय कोश के भी नष्ट होने पर ये कारण शरीर में खिचकर लय हो जाते हैं तथा मनोमय कोश की प्रकृति की सामग्री प्रकृति में लय हो जाती है । जीव अपनी यात्रा के लिए इस लोक में प्रवेश करता है। जब इस जीवात्मा का पुनर्जन्म का अवसर आता है तो उसका कारण शरीर इन्हीं लोकों में पुनः सामग्री का संग्रह करता है। अब जीवात्मा का केवल कारण शरीर रह जाता है जो मोक्ष पर्यन्त बना रहता है।
यह लोक देवगणों का लोक है। पहले जिस स्थूल स्वर्गलोक का वर्णन किया गया है। वह कामलोक का ही एक भाग है। इस लोक में देवगणों का ही वास है। इसके भी सात विभाग हैं जिनमें नीचे के चार खण्ड रूप विभाग हैं व शेष अरूप खण्ड हैं। सबसे नीचे के खण्ड में जीव मनोमय कोश से सम्बद्ध रहता है जिसके त्यागने पर वह उच्च खण्ड में जाता है। शुद्ध विचार, शुद्ध मन, सदाचार के प्रयत्न और इच्छाएँ 'उपकारार्थ कर्म करने वाले जीव यहाँ पहुंचते हैं ।
कोई भी सद्गुण व्यर्थ नहीं जाता चाहे वह क्षण भर के लिए ही किया गया हो। थोड़ी भलाई करने वाले भी यहाँ थोड़ी अवधि के लिए अवश्य पहुंचते हैं, किन्तु ऐसा व्यक्ति यहां आता अवश्य है। पाशवी वृत्ति वालों का यहाँ प्रवेश नहीं होता। यहाँ कोई विरोधी व्यक्ति भी नहीं आता। यहाँ जीव