________________
साधारण जीवों की परलोक यात्रा
[११५ फिर शुद्ध ब्रह्म ही शेष रहता है। जीवात्मा अपना अस्तित्व उस ब्रह्म में विलीन कर देती है। जीवात्मा का विकास धीरेधीरे होता है। संसार के सभी अनुभव व संस्कार इस कारण देह में जमा रहते हैं तथा भविष्य में फल देते हैं। ___ यह कारण शरीर मुक्तावस्था तक प्रत्येक जन्म में बना रहता है। बाकी के स्थूल व लिंग शरीर और मनोमय कोश नष्ट होकर प्रत्येक जन्म में नये बनते रहते हैं। कारण शरीर में संग्रहीत सभी कर्म-अनुभव एवं संस्कार पुनः नये शरीर का कारण बनते हैं । यही प्रारब्ध कहलाता है। ___जीवात्मा का निवास इस मनसलोक की पंचम भूमिका में है। प्रत्येक शरीर में जीवात्मा ही कर्ता है। उसी से अहंकार उत्पन्न होता है । यही अविद्या या भ्रम है। अपनी वासना के कारण यह अपने को शरीर, मन आदि समझ लेता है। किन्तु कर्ता जीवात्मा ही है एवं भोक्ता भी वही है। यह शरीर कर्ता एवं भोक्ता नहीं है । ___ इस मनोलोक में अनेक प्रकार के जीव रहते हैं । ये प्रतिभा सम्पन्न होते हैं । ईसाई व मुसलमान जिनको फरिश्ते या ईश्वर दूत कहते हैं वे इसी लोक के वासी हैं। इनकी बुद्धि, शक्ति और ज्ञान विशाल होता है। इसके अरूप खण्ड में जीवन्मुक्त महात्मा और उनके दीक्षित शिष्य रहते हैं जो मनुष्यों को नईनई प्रेरणाएँ व सूझ देते रहते हैं।
000