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मृत्यु और परलोक यात्रा (२) ब्रह्मलोक को प्राप्त होना , किन्तु जिन ज्ञानियों का संकल्प ब्रह्मलोक की प्राप्ति है उनको ब्रह्म साक्षात्कार नहीं हो सकता। उनके अन्तःकरण में ब्रह्मलोक के महत्त्व का भाव होने से तथा उनका कारण शरीर से सम्बन्ध विच्छेद नहीं होने से ऐसे साधक ब्रह्मलोक में जाते हैं । ब्रह्मज्ञानियों में भी ये दो फल भेद हैं । यह ब्रह्मलोक "कार्यब्रह्म" कहलाता है जहाँ जीवात्मा अनन्तकाल तक रहता है तथा प्रलय काल में वह ब्रह्मा के सहित परब्रह्म में लय हो जाता है। इनका भी पुनरागमन नहीं होता। __ ब्रह्मलोक में पहुंचे ज्ञानियों का सब लोकों में इच्छानुसार गमन होता है। इनको वहाँ के दिव्य भोगों को भोगने का अधिकार है किन्तु उन्हें जगत की उत्पत्ति, संचालन तथा प्रलय का कार्य करने का अधिकार नहीं होता। यह कार्य परब्रह्म से उत्पन्न ईश्वर का ही है। ये ब्रह्मा के अधीन रहते हैं अतः सृष्टि के कार्यों में हस्तक्षेप करने का इनका अधिकार नहीं है, न इनकी क्ति ही है । जो साधक ब्रह्म शरीर को प्राप्त कर लेते हैं वे इस लोक के अधिकारी होते हैं। निर्वाण शरीर को प्राप्त होने वाले सीधे परब्रह्म में विलीन हो जाते हैं। ___ कुछ अधिकार प्राप्त महापुरुष जैसे वशिष्ठ, व्यास आदि लोक कल्याण के लिए कहीं भी. आ जा सकते हैं। सामान्य व्यक्तियों की भाँति इनका जन्म-मरण नहीं होता। ये परमेश्वर की आज्ञा से ही इस लोक में आते हैं एवं अपना कार्य करके 'पुनः परमात्मा में लीन हो जाते हैं । ये अन्य मुक्त पुरुषों से भिन्न होते हैं।
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