Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

View full book text
Previous | Next

Page 112
________________ साधारण जीवों की परलोक यात्रा . [१११ सबसे नीचे के खण्ड में वातावरण अन्धकार युक्त और सुनसान होता है। इसमें जीवात्मा के सब दुर्व्यसन प्रकट हो जाते हैं । यहाँ नीच, शराबी, कुकर्मी, दूसरों को कष्ट पहुंचाने वाले जीव रहते हैं । ये लोग पृथ्वी के दुष्ट लोगों पर अपना प्रभाव जमा कर उनसे दुष्ट कर्म भी करवाते हैं। दुष्ट मनुष्य इसके माध्यम बन जाते हैं। पशु प्रवृति में रहने से इनका लिंग शरीर पशु रूप धारण कर लेता है। ये अपनी ही प्रकृति के अनुकूल मनस वाले स्थूल लोक के व्यक्तियों को अपने विचारों से प्रभावित भी करते हैं तथा सदा सहायता करते हैं जिससे वे अधिक दुष्ट हो जाते हैं व बुरा से बुरा कार्य कर बैठते हैं। भली आत्माएँ भले व्यक्तियों की ओर आकर्षित होकर उनको और अधिक भले कार्य करने में सहायता देती हैं। इस लोक में जीवों को अपनी वासना के अनुसार सुख-दुःखों का अनुभव होता है । यह अनुभूति का तल है । स्थूल लोक में किए गए सभी अच्छे-बुरे अनुभवों का यहाँ पाचन होता है। ___ इस लोक में चेतना के विकास की सम्भावनाएँ नहीं हैं। यह जीव के अन्तराल का समय है। पुनर्जन्म से पूर्व निम्न एवं सामान्य मनस वाले जीव को एक निश्चित अवधि तक इसमें रहना पड़ता है। यहाँ रहकर जीवात्मा की शुद्धि होती है फिर वह आगे के लोक के उपयुक्त होने पर वहाँ जाता है । यहाँ मनुष्य की नीयत, कामना, वासना, सदाचार, बुद्धि आदि में कोई अन्तर नहीं आता। मनुष्य जैसा है वैसा ही रहता है केवल उसका स्थूल शरीर नहीं होता। इस लोक के सात खण्ड या भूमिकाएँ हैं। प्रत्येक खण्ड के वासी दूसरे खण्ड वालों से नहीं मिल

Loading...

Page Navigation
1 ... 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138