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मृत्यु और परलोक यात्रा
(स) ब्रह्मज्ञान का फल
ब्रह्मज्ञान का फल जन्म-मरण से छूटकर उस परमात्मा को प्राप्त होना ही है । इसका यही मुख्य फल है। केवल मात्र ब्रह्म ज्ञान ही मुक्ति का हेतु है। देवताओं की उपासना का फल साधक के उद्देश्य के अनुसार मिलता है। यज्ञादि कर्मों का फल स्वर्गादि में जाकर लौट आना है । ब्रह्मज्ञान के उन साधकों को जिनको इस जन्म में ब्रह्मज्ञान नहीं हुआ है उसका फल उन्हें जन्मान्तर में मिलता है। किया हुआ अभ्यास व्यर्थ नहीं जाता।
ज्ञान प्राप्ति पर उसके संचित और क्रियमाण कर्म समाप्त हो जाते हैं एवं प्रारब्ध कर्म भोग से समाप्त हो जाने से उसका पुनर्जन्म नहीं होता। ज्ञान प्राप्ति पर पुण्य एवं पाप कर्म दोनों समाप्त हो जाते हैं जिससे वह परब्रह्म को प्राप्त हो जाता है। ब्रह्म की प्राप्ति कर्मों का फल नहीं है बल्कि कर्म क्षय से प्राप्त होती है।
यह ज्ञान.का ही फल है। परमात्मा की प्राप्ति का फल हर्ष-शोक का नाश, मृत्यु से छूटना, अविद्या का नाश, हृदय ग्रन्थि का नाश, समस्त संशयों एवं कर्मों का नाश, पापों से छटना आदि है तथा इनके छूटने से परमात्मा की प्राप्ति होती है। दोनों का अन्तर्भाव एक ही है। ___ ब्रह्म ज्ञानियों को भी उनके संकल्प के अनुसार दो प्रकार का फल प्राप्त होता है।-(१) परब्रह्म को प्राप्त होना तथा (२) ब्रह्मलोक को प्राप्त होना। ये दोनों ही अन्त में मोक्ष देने वाले हैं।