________________
ब्रह्मविदों की परलोक यात्रा
[ १०१
से भेद और अभेद दोनों प्रकार से सम्बन्ध है । ज्ञानमार्गी अभेद उपासना को ग्रहण करते हैं एवं भक्त भेदोपासना को। दोनों का फल एक ही है। निष्काम भाव से किए गए शास्त्र विहित कर्म भी परमात्मा की प्राप्ति में सहायक है । अतः उनका त्याग उचित नहीं है। ___अन्य सब धर्मों की अपेक्षा भगवान की भक्ति विषयक धर्म अधिक श्रेष्ठ है। जो सांधक उस परब्रह्म के तत्त्व को नहीं समझ सकता उसके लिए प्रतीकोपासना का विधान किया गया है। प्रतीकोपासना करने वालों को उसी के अनुसार फल मिलता है । वे न तो ब्रह्मलोक में जाते हैं, न सीधे ब्रह्म को ही प्राप्त होते हैं।
(ब) ब्रह्मज्ञान के उपासक
ब्रह्म विद्या के तीन प्रकार के उपासक होते हैं
(१) जिनको इसी जन्म में ब्रह्मज्ञान हो जाता है। वे . जीवन्मुक्त होकर प्रारब्ध भोग की समाप्ति पर देहपात के बाद सीधे परमात्मा को प्राप्त होते हैं। ... (२) दूसरे वे साधक हैं जो परब्रह्म को प्राप्त न होकर
ब्रह्मलोक में जाकर वहां के भोगों को भोगते हुए कल्पान्त तक | वहीं निवास करते हैं।
(३) तीसरे प्रकार के वे साधक होते हैं जिनको ब्रह्मज्ञान नहीं हुआ है।