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अन्तराल में भटकती आत्माएँ
[७७सम्पर्क करते रहते हैं एवं उनसे उस लोक की जानकारी लेते रहते हैं। ' ये जीवात्माएँ भी लोक कल्याण के लिए अपने ज्ञान को देना चाहती हैं एवं माध्यम ढूँढ़ती रहती हैं । ये या तो उपयुक्त गर्भ मिलने पर स्वयं शरीर धारण कर अपना ज्ञान देती हैं या किसी के शरीर में प्रवेश करके अपने ज्ञान को उसके माध्यम से सम्पादित करती हैं। प्लेनचेट या ऊझाबोर्ड के माध्यम से इन आत्माओं से सम्वाद भी किया जा सकता है।
दूसरा तरीका "माध्यम" का है। जीवात्मा से प्रत्यक्ष बातचीत के लिए किसी माध्यम को तैयार किया जाता है जिससे उसकी सारी जानकारी एकत्र की जाती है । देव या प्रेत आत्मा अपने ही अनुकूल प्रकृति वाले शरीर में प्रविष्ठ होती है। __ सामान्यतया देवात्मा अपने ही रक्त वाले मनुष्यों के शरीर में ही प्रवेश करती है। अन्य उत्कृष्ट आत्माओं को बुलाने के लिए माध्यम को उसके अनुकूल बनना पड़ता है। धार्मिक व्यक्ति में प्रेतात्मा तथा दुष्ट व्यक्ति में देवात्मा का प्रवेश सम्भव नहीं है । हर आत्मा हर व्यक्ति के शरीर में प्रवेश नहीं कर सकती।
दिव्य आत्माओं के लिए दिव्य एवं सशक्त शरीर आव-- श्यक है । जो शरीर हमें मिला है उसका स्नायु संस्थान एक ही आत्मा की ऊर्जा को झेलने के लिए सक्षम है। यदि दूसरी आत्मा भी उसमें प्रविष्ठ होती है तो उसकी अतिरिक्त शक्ति को यह स्नायुमंडल सहन नहीं कर सकता जिससे वह व्यक्ति बड़ी बेचैनी अनुभव करता है । फिर अनायास शक्ति के आग