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जीवात्मा का क्रमिक विकास
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इनमें प्रत्येक के सात-सात खण्ड हैं ।
इन सात आवरणों में स्थूल, मनस, आत्मिक तथा ब्रह्म शरीर सघन हैं जिनको पार करने में काफी कठिनाई होती है । अन्य तरल हैं जिनको शीघ्र ही पार किया जा सकता है । ये सात आवरण सूक्ष्म होने के कारण इन्हें सात आकाश भी कहा जाता है तथा यह कहा जाता है कि ईश्वर सातवें आसमान में है । ये सात आसमान भौतिक जगत के नहीं बल्कि सूक्ष्म जगत के हैं जिनका ज्ञान की अवस्था में अनुभव होता है ।
इन्हीं सात आवरणों के अनुसार सूक्ष्म सात लोक हैं । हिन्दुओं ने इनको भू, भुवः, स्व:, मह:, जनः, तपः और सत्यम् कहा है । थियोसॉफी ने इनको भूलोक, भुवर्लोक ( काम लोक), मनस लोक, स्वर्ग लोक, बुद्धि लोक, आत्मलोक तथा निर्वाण लोक कहा है । इनका विभाजन और भी कई प्रकार से किया गया है ।
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योग साधना द्वारा साधक इन शरीरों को एक-एक करके पार करता है किन्तु ब्रह्म के उपासक इनको एक साथ पार करके मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं । ये शरीर उनके लिए बाधा नहीं बनते न मृत्यु के बाद उन्हें विभिन्न लोकों में रहना ही पड़ता है । कुण्डलिनी जागरण द्वारा भी एक-एक को पार करना पड़ता है ।
इन शरीरों को कुछ विशेषताएँ हैं