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___ मृत्यु और परलोक यात्रा
___मृत्यु के बाद जीवात्मा अपने क्रमों एवं विकास के अनुसार निर्धारित लोक में ही प्रवेश करता है । आगे के लोक में उसकी गति न होने से वह उसी लोक में उसके अधिमानी देवता के नियन्त्रण व अनुशासन में रहता है तथा पुनर्जन्म तक उसी में रहकर सुख-दुःखों का भोग भोगता है । ये लोक भी क्रमशः एक-दूसरे से उन्नत एवं सूक्ष्म होते गए हैं जिनमें सबसे उत्तम ब्रह्मलोक है जहाँ जीवात्मा का स्थायी निवास बनता है । यहाँ जीवन्मुक्त पुरुष अपने कारण शरीर के साथ रहते हैं। .. जीवात्मा का स्थूल शरीर से ब्रह्म तक की यात्रा में ये सात शरीर या सात आवरण बाधा स्वरूप है जिन्हें इस स्थूल शरीर में रहकर साधना द्वारा पार किया जाता है। सातवें को पार करने पर ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। योगी इनको एक-एक को पार करता है जबकि भक्त इनको एक साथ पार कर जाता है इसलिए भक्त को योगी से श्रेष्ठ माना जाता है। इन आवरणों में कुछ तरल हैं एवं कुछ सघन हैं। सघन को पार करने में विशेष प्रयत्न करना पड़ता है। प्रत्येक आवरण पार करने पर साधक को विशेष अनुभूतियाँ होती जाती हैं जिससे उसका व्यक्तित्व निरन्तर निखरता जाता है । ये आव. रण हैं
(१) स्थूल शरीर (फीजिकल बॉडी)। (२) आकाश या भाप शरीर (इथरिक बॉडी)। (३) सूक्ष्म शरीर (एस्ट्रल बॉडी)। (४) मनस शरीर (मेण्टल बॉडी)। (५) आत्मिक शरीर (स्प्रोच्यूअल बॉडी)। (६) ब्रह्म शरीर (कोस्मिक बॉडी) और (७) निर्वाण शरीर (वॉडीलेंस बॉडी।