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मृत्यु और परलोक यात्रा (ब) स्थूल शरीर
जीवात्मा की विकास यात्रा का आरम्भ इसी शरीर से होता है। संसार के सभी कार्यों एवं अनुभवों का यही माध्यम है जिससे जीवात्मा का विकास होता है । बिना इस शरीर के उसके विकास का अन्य कोई उपाय नहीं है। जीवात्मा की उन्नति की सभी साधनाएँ भी इसी शरीर से होती हैं। इसके बिना कोई भी साधना संभव नहीं है। शरीर को सताने या उसे हानि पहुंचाने से साधना में बाधा पड़ती है जिससे जीवात्मा का विकास रुक जाता है। इसलिए शरीर को सताना नहीं है, बल्कि इसका उपयोग करना है।
जब तक यह स्थूल शरीर स्वस्थ सशक्त और सन्तुष्ट नहीं होता तब तक अध्यात्म में प्रवेश कठिन है । ___ यह शरीर पूर्णत भौतिक तत्वों से बना होता है। इसमें केवल चेतना अभौतिक है। विज्ञान भी भौतिक शरीर बना सकता है किन्तु उसमें वह चेतना का प्रवेश नहीं करा सकता। वह रोबेट (यन्त्र मानव) ही होगा। जन्म के पश्चात् सात वर्ष तक इसी का विकास होता है । इसके भीतर के अन्य शरीर बीज रूप में रहते हैं जिनका उम्र के साथ विकास होता जाता है। इस समय बुद्धि, भावना, वासना आदि विकसित नहीं होती। ___पशु का भौतिक शरीर ही विकसित होता है । जिनका जीवन पेट और प्रजनन की आवश्यकता पूर्ति तक ही सीमित है वे भौतिक शरीर में ही जी रहे हैं। कुण्डलिनी के रूप में इसका सम्बन्ध मूलाधार चक्र से है जो भौतिक शक्ति का प्रतीक है। इस शरीर में काम वासना की सम्भावनाएँ हैं जो