Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

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Page 59
________________ ५८] मृत्यु और परलोक यात्रा (स) मृत्यु को सुखद बनाया जा सकता है मनुष्य स्वयं अपनी मृत्यु को सुखद एवं दुःखद बना सकता है। इसका निर्धारण स्वस्थ चिंतन एवं हितकारी कार्यों से ही होता है । मृत्यु का कोई भरोसा नहीं कि कब आ जाय, इस-- लिए मनुष्य को सदा हितकारी कर्म ही करते रहने से मन शांत एवं उद्वेग रहित रहता है। कर्मों का फल अवश्य मिलता है इसलिए अच्छे कर्म करने वाला कभी मृत्यु से भयभीत नहीं होता । उसमें एक आत्मविश्वास रहता है। वह निर्भीक एवं आश्वस्त रहता है। मृत्यु के भय से बचने के लिए सद्विचार एवं सद्कर्म दोनों आवश्यक हैं क्योंकि दोनों का ही भिन्न-भिन्न फल होता है। इन दोनों की जीवन में साधना करने वालों को किसी देवीदेवता की उपासना, आराधना करने की आवश्यकता नहीं है। यही सबसे बड़ी आराधना एवं ईश्वर पूजा है जिसके लिए उसे संसार में भेजा गया है । इसके अभाव में अन्य सभी साधनाएँ अर्थहीन हैं। विवेकशील व्यक्ति कर्म एवं संस्कारों का ही परिष्कार करते हैं । मृत्यु से भयभीत होने की अपेक्षा उसकी सुनियोजित तैयारी आवश्यक है। ___ यह मानव जीवन किसी दैवी अनुकम्पा से प्राप्त नहीं हुआ है, न किसी के वरदान स्वरूप मिला है, न किसी देवता ने उपहार स्वरूप दिया है, न यह कोई आकस्मिक घटना है जो अनायास एवं निष्प्रयोजन ही घट गई, यह पूर्व के सैकड़ों जन्मों के शुभाशुभ कर्मों के फलस्वरूप प्राप्त हुआ है जिसे और अधिक उन्नत बनाने का कार्य इसी जन्म से किया जाना चाहिए अन्यथा अगला जीवन इससे भी निकृष्ट हो सकता है। उत्तम

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