________________
मृत्यु का अनुभव
[६१. देती है किन्तु शरीर यदि बेकार नहीं हआ है तो कोई अन्य - आत्मा उसमें प्रवेश कर जाती है जिससे वह मृत शरीर पुनः जो उठता है। ऐसे उदाहरण भी देखने में आए हैं जैसे पूर्व में - जसवीर का उदाहरण दिया गया है।
मृत्यु पर स्थूल शरीर जैसा का तैसा रहता है केवल इंद्रियों का स्वामी जीवात्मा उसमें से निकल कर चला जाता है। उसके बिना इन्द्रियाँ व शरीर प्रकृति समह मात्र रह जाता है। मृत्यु के समय मनुष्य के गत जीवन का सम्पूर्ण चित्र सविस्तार उपस्थित होता है । जीवन में जो मुख्य प्रकृति रही उस परजीव का प्रभाव जम जाता है। इसी से यह निश्चित हो जाता . है कि वह किस लोक में रहेगा। इसके बाद इस स्थूल शरीर के भीतर का छाया शरीर (ईथर शरीर) का स्थूल शरीर से - सम्बन्ध टूटता है । मृत्यु के समय जीवन ऊर्जा सिकुड़ कर पहले एक केन्द्र पर एकत्र होती है फिर बाहर निकलती है।
शरीर में प्राण सिकुड़ कर पहले नाभि पर एकत्र होता है - व फिर बाहर निकलता है । यह नाभि ही जीवन एवं मृत्यु का केन्द्र है। इस समय शरीर को अत्यन्त पीड़ा होती है किन्तु - प्रकृति ने व्यवस्था कर रखी है कि उस समय मनुष्य बेहोश हो जाता है जिससे उस पीड़ा का उसे अनुभव नहीं होता। सजगता होने पर इस मृत्यु को देखा भी जा सकता है। मृत्यु के समय समस्त इन्द्रियां, प्राण तथा अन्तःकरण के लिंग में एक हो जाने पर हृदय के अग्रभाग में प्रकाश हो जाता है किन्तु मनुष्य बेहोशी के कारण उसे देख नहीं पाता। ___ शरीर एक निश्चित अवधि तक ही सक्रिय रहता है किन्तु व्यक्ति की वासनाएँ पूरी न होने से वह और जिन्दा रहना