Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

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Page 67
________________ मृत्यु और परलोक यात्रा चेतना रह जाती है जिससे मुक्ति दिलाना है । दाह संस्कार के पीछे दूसरा कारण यह भी है कि स्थूल शरीर के मृत होने पर भी उसके भीतर का छाया शरीर (दूथरिक बॉडी) उसके आसपास मंडराता रहता है तथा ३६ घंटे के भीतर यह जीवात्मा उसको भी मृतवत् छोड़कर उसमें से निकल जाती है। दाह संस्कार करने पर यह उसी के साथ नष्ट हो जाता है । यदि मुर्दे को गाड़ दिया जाए तो वह उस कब्र के ऊपर मंडराता हुआ धीरे-धीरे नष्ट होता है क्योंकि स्थूल शरीर के प्रति जो उसका आकर्षण था वह समाप्त हो जाता है। इसलिए मुर्दे को गाड़ने की अपेक्षा उसका दाह संस्कार करना अधिक अच्छा है। दाह संस्कार के पीछे हिन्दुओं की यही धारणा है। दूसरी बात यह भी है कि हिन्दू आत्मा को ही महत्त्व देते हैं । शरीर का महत्त्व तभी तक है जब तक कि उसमें आत्मा है । आत्मा निकल जाने पर शरीर मिट्टी के समान है किन्तु आत्मा का उससे मोह रह जाने के कारण ही उसका विधिवत दाह-संस्कार किया जाता है । उसे मिट्टी मानकर फेंका नहीं जाता । इसमें जल्दी भी की जाती है जिससे जीवात्मा को अधिक समय तक उस शरीर के आस-पास भटकना नहीं पड़े एवं शीघ्र ही अपनी अगली यात्रा आरम्भ कर दे। यहाँ तक कि तीसरे दिन उसकी अस्थियाँ भी गंगा या अन्य पवित्र नदी में प्रवाहित कर दी जाती हैं। (स) जीवात्मा का घर में निवास जीवात्मा का स्थूल एवं छाया शरीर के नष्ट हो जाने पर

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