________________
मृत्यु के बाद का जीवन
[६७ पर भी उसका उसके घर एवं परिवार जनों से मोह बना रहता है । जिसे छोड़ने में उसे थोड़ा समय लगता है। सामान्य आत्माएँ मृत्यु के बाद शीघ्र ही नया गर्भ खोज लेती हैं किन्तु कुछ को तीन दिन, तेरह दिन, एक वर्ष या तेरह वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। ____ कुछ को इससे भी अधिक समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। हिन्दुओं की यह मान्यता है कि यह जीवात्मा तेरह दिन तक घर में ही रहती है । इसके बाद वह प्रेत योनि में रहती है। इस प्रेतयोनि से उसकी मुक्ति के लिए तेरह दिन के बाद भी कई प्रकार के क्रिया कर्म किए जाते हैं जिससे वह प्रेतयोनि से मुक्ति पाकर आगे की यात्रा में निकल जाती है। ___ तेरह दिन तक उस जीवात्मा का घर में निवास मानकर उसके लिए बारह दिन तक शोक मनाते हैं, गरुड़ पुराण सुना कर उसे उस अशरीरी दुनिया की सूचना दी जाती है जिससे वह अपरिचित है जीवात्मा के प्रतीक के रूप में उसके कमरे में जल से भरा हुआ कलश भी रखते हैं जिसे 'श्रावणी का कलश' कहते हैं तथा उस घर में घी का दीपक जलाते हैं क्योंकि उस सूक्ष्म शरीरधारी जीवात्मा को तेज प्रकाश असह्य होता है। दसवें, ग्यारहवें एवं बारहवें दिन उसका क्रिया कर्म एवं पिण्डदान भी किया जाता है जिससे यह जीवात्मा तृप्त होती है।
तेरहवें दिन उस जीवात्मा को विदाई दी जाती है । उस समय उस श्रावणी के कलश को किसी पीपल के पेड़ के नीचे जाकर रख आते हैं तथा आते समय पीछे मुड़कर भी नहीं देखते वरना वह जीवात्मा फिर उसके साथ घर पर आ जाती