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मृत्यु के बाद का जीवन
[ ६५ संकल्प भी किया जाता है। अक्सर देखा गया है कि ऐसा करते ही जीवात्मा फौरन शरीर छोड़ देती है।
जीवात्मा का अपना स्वतन्त्र अस्तित्व है जो शरीर की मृत्यु के बाद भी उससे अलग होकर जीवित रहता है तथा अपने स्थूल शरीर के समीप ही खड़ा होकर अपने मृत शरीर को इस प्रकार देखता रहता है जैसे वह किसी अन्य के शरीर को देख रहा हो । वह उस शरीर में पुनः प्रवेश नहीं कर सकता किन्तु मोहवश उसे छोड़कर जाता भी नहीं। ___ काफी समय तक तो उसे विश्वास ही नहीं होता कि वह मर गया है । उसे अपनी मृत्यु का विश्वास दिलाने के लिए शव को दाह संस्कार के लिए जब जब उठाते हैं तो उसके परिजन रोना-धोना करते हैं । यह जीवात्मा कभी शरीर के प्रति मोह वश श्मशान तक जाता है तथा अपने ही शरीर को जलते हुए देखता है तो उसे विश्वास हो जाता है कि वह मर गया है तथा इसके बाद ही वह अपनी अगली यात्रा पर निकल जाता है।
(ब) दाह संस्कार
हिन्दुओं में मृत शरीर के दाह संस्कार की प्रथा है। इसमें भी सभी परिजनों का सम्मिलित होना एक धार्मिक कृत्य मानकर आवश्यक माना जाता है। सभी के सामने परिजन शव को चिता में रखते हैं तथा उसका ज्येष्ठ पुत्र उसमें अग्नि देता है । वही ज्येष्ठ पुत्र अन्त में कपाल क्रिया करता है जिसका अर्थ है कि अन्य अंगों के जल जाने पर भी मस्तिष्क में उसकी