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७. मृत्यु के बाद का जीवन (अ) जीवात्मा का शरीर से मोह
जिस शरीर रूपी घर में यह जीवात्मा सत्तर-अस्सी वर्ष रह जाती है तथा जिसे वह अपना घर समझने लगती है तो उसका उसके प्रति इतना मोह हो जाता है कि वह आसानी से उसे छोड़ना नहीं चाहती। फिर परिवार सम्पत्ति आदि का मोह भी बाधा बन जाता है।
ऐसी स्थिति में मनुष्य मरते समय बहुत घबराता है तथा उसके प्राण किसी मोह में फंसे होने के कारण शरीर को छोड़ते नहीं। जिसका मोह जितना अधिक होता है उतनी ही उसे शरीर छोड़ने में वेदना होती है। शरीर व्यर्थ हो चुका है एवं जीवात्मा उसे छोड़ना नहीं चाहती, ऐसी स्थिति में काफी समय तक उसे जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करना पड़ता है।
उस समय उसके परिजन इस मोह को छुड़ाने के लिए उसके सभी परिजनों को बुला लेते हैं जिससे उसकी उनसे मिलने की इच्छा शान्त हो जाए। मोह भंग करने के लिए उसे गीता भी सुनाई जाती है । उसके सामने गऊदान, एकादशी व्रत करना, गायों को घास डालना, दान-पुण्य करना आदि का