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मृत्यु का अनुभव
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विचार रखकर अथवा दूसरों का भला करके कोई दूसरे पर अहसान नहीं कर रहा है बल्कि वह अपने ही जीवन को श्रेष्ठ बनाने का मार्ग प्रशस्त कर रहा है ।
ये उत्तम विचार और रचनात्मक कार्य स्वयं की ही उन्नति का कारण बनता है । यह शरीर अपनी भावनाओं, आकां क्षाओं, वासना आदि की पूर्ति का साधन ही नहीं है बल्कि उच्चता की ओर बढ़ने का साधन भी है । इसका उपयोग इसी के लिए किया जाना चाहिए । शरीर का पोषण साध्य नहीं, साधन है । साध्य का विस्मरण कर जो शरीर पोषण में ही रत रहते हैं वे अपने जीवन को व्यर्थ गंवा रहे हैं ।
जो सदा दूसरों के अवगुण ही ढूंढ़ता है व निन्दा ही करता रहता है वह स्वयं का विकास नहीं पतन ही कर रहा है । इसके विपरीत दूसरों के गुणों को देखने वाला अपने गुणों का तथा सद्प्रवृत्ति का विकास करता है जो स्वयं की आत्मोन्नति का साधन बनता है ।
(द) मृत्यु का अनुभव
सोने से पूर्व जिस प्रकार स्वप्न की छाया पड़ने लगती हैं। उसी प्रकार मृत्यु के छः माह पूर्व उसकी छाया पड़ने लगती है । उस समय जागरूक व्यक्ति मृत्यु की भविष्यवाणी कर सकता है । पाँच-छः घंटे या एक दो दिन पूर्व तो इसके स्पष्ट संकेत दिखाई देने लगते हैं जिससे कई व्यक्ति अपनी मृत्यु की पूर्व सूचना दे देते हैं । जो नित्य सोते या उठते समय प्रार्थना का प्रयोग करते हैं या ध्यान करते हैं उन्हें भी अपने मत्यु के