Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

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Page 58
________________ मृत्यु का अनुभव [५७ ___ विज्ञान कहता है, "क्रोमोजोम्स की मृत्यु ही मनुष्य की मृत्यु है । ये क्रोमोजोम्स एक निश्चित अवधि तक ही सक्रिय रहते हैं।" किन्तु अध्यात्म कहता है कि मनुष्य एक भौतिक इकाई मात्र ही नहीं है बल्कि एक अभौतिक पदार्थ है जो मृत्यु के समय शरीर से निकलकर शून्य में चला जाता है एवं समय “पाकर पुनः नया शरीर ग्रहण करता है। क्रोमोजोम्स भी उसी 'चेतना शक्ति से जीवित एवं मृत होते हैं। अध्यात्म शरीर को मनुष्य नहीं मानता न शरीर की मृत्यु को मनुष्य की मृत्यु मानता है। शरीर उस मनुष्य का निवास गृह है जिसका वह मकान की भाँति उपयोग करता है । वह आत्म तत्त्व जो शरीर से निकलकर जाता है वही मनुष्य है "जिसे "जीवात्मा" कहा जाता है। इसलिए शरीर की मृत्यु मनुष्य की मृत्यु नहीं है, न इस मृत्यु से जीवन का अन्त ही होता है । मृत्यु के बाद भी जीवन निरन्तर चलता रहता है। यह शरीर की मृत्यु कोई घटना नहीं है बल्कि एक प्रक्रिया है , जिसका आरम्भ जन्म के साथ ही हो जाता है । जिस वस्तु का “निर्माण हुआ है वह एक निश्चित अवधि के बाद अवश्य नष्ट होगी । वस्तु के निर्माण के साथ ही उसके ध्वंश की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। शरीर के साथ भी यही नियम है । मृत्यु के समय न शरीर नष्ट होता है न आत्मा । दोनों का केवल सम्बन्ध विच्छेद होता है। शरीर से ऊर्जा के निकल जाने पर वह निष्क्रिय हो जाता है जिससे उसको मृत्यु कहा जाता है। यह ऊर्जा उस आत्मा की ही है जिसका शरीर से सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। यह जीवन ऊर्जा आत्मा के रूप में समस्त शरीर में व्याप्त रहती

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