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मृत्यु और परलोक यात्रा - बिना बार-बार जन्म और मृत्यु के चक्र से गुजरे मोक्ष की सम्भावनाएँ ही समाप्त हो जाती हैं । जीवात्मा के पूर्ण विकास के लिए एक ही जन्म पर्याप्त नहीं है इसीलिए परमात्मा ने अनेक जन्मों की व्यवस्था की है । इसलिए मृत्यु को हेय मानना व उससे भयभीत होना परमात्मा में अविश्वास प्रकट करना है तथा उसकी अवमानना करना है। ____ मृत्यु से भयभीत होने वाला उसे टाल तो नहीं सकता . बल्कि वह उसे और निमन्त्रण दे देता है। कहते हैं कि एक बार ब्रह्मा जी ने मौत को दो हजार आदमी मारकर लाने का आदेश दिया। जब वह वापस लौटी तो उसके साथ चार हजार आदमी थे। जब उससे जवाब तलब किया गया तो मौत ने कहा कि उसने तो दो ही हजार मारे थे । शेष तो मरने के डर से भयभीत होकर अपने आप मर गये और उसके साथसाथ चल दिए।
(ब) मृत्यु क्या है ?
मृत्यु इस पृथ्वी की सबसे बड़ी माया (भ्रम) है । वास्तव में मृत्यु है ही नहीं। यह तो केवल जीवन की अवस्था का परिवर्तन है । जीवन का क्रम तो जारी रहता ही है। जीवन को शरीर तक ही सीमित मान लेने से मृत्यु का भ्रम होता है किंतु जीवन शरीर का नहीं जीवात्मा का है जिसकी कभी मृत्यु नहीं होती। वह अज, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नाश होने से उसका नाश नहीं होता। घड़े के फूटने से 'भीतर का आकाश नष्ट नहीं होता।