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मृत्यु और परलोक यात्रा मनुष्य शरीर नहीं आत्मा ही है । आत्मा ही उसका वास्त"विक स्वरूप व स्वभाव है। आत्मा निर्वस्त्र है, शुद्ध है। इस "पर जो आवरण है वे मनुष्य ने ओढ़ रखे हैं जिससे उसे आत्मा का पता नहीं चलता। ये आवरण भी झूठे हैं, मिथ्या हैं। इसलिए इन्हें “माया” कहा है। ये सभी भ्रम व अज्ञान के कारण हैं जो ज्ञान से ही हटेंगे। अन्य कोई उपाय नहीं है। अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान लेना ही "मुक्ति' है। जब तक ब्रह्म और आत्मा की एकता का बोध नहीं हो जाता तब तक सो कल्पों में भी मुक्ति नहीं हो सकती। जीवात्मा तथा 'परमात्मा का जो भेद है वह सदा बना ही रहेगा।