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स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर
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पुनर्जन्म के समय गर्भ में यह जीवात्मा अणु शरीर में प्रवेश करता है । उस अणु शरीर की प्रकृति के अनुसार ही आत्मा उसमें प्रवेश करती है । श्रेष्ठ अणु में श्रेष्ठ आत्मा हो प्रवेश करती है एवं निकृष्ट अणु में निकृष्ट आत्मा। मृत्यु के वाद साधारण आत्माएँ तेरह दिन के भीतर नये जन्म की खोज कर लेती हैं। अधिक निकृष्ट एवं अधिक उच्च आत्माओं को लम्बे समय तक रुकना पड़ता है जिन्हें प्रेत, भूत या देवता आदि कहते हैं।
(स) कारण शरीर
इस सूक्ष्म शरीर के पीछे इसका कारण शरीर होता है जो सत्व, रज एवं तम गुणों से युक्त है । यही इस सूक्ष्म शरीर का कारण है । सत्व गुण शुद्ध है किन्तु वह रज और तम के साथ मिलकर संसार बन्धन का कारण होता है । प्रसन्नता आत्मानुभव, परम शान्ति, तृप्ति, आनन्द और परमात्मा में स्थिति ये सत्वगुण के धर्म हैं। क्रिया रूप विक्षेप शक्ति रजोगुण की है जिससे सनातन काल से विशेष क्रियाएँ होती हैं। इससे राग, द्वेष और दुःख उत्पन्न होते हैं । काम, क्रोध, लोभ, मोह, दंभ, दूसरों के दोष ढूंढ़ना, अभिमान, ईर्ष्या, मत्सर ये रजोगुण के धर्म हैं। इन्हीं से जीव कर्मों में प्रवृत्त होता है । यह रजोगुण ही बन्धन का हेतु है तथा यही जन्म मरण का कारण है। अज्ञान, मूढ़ता, आलस्य, प्रमाद, जड़ता, निद्रा आदि तम के गुण हैं।
जाग्रत अवस्था का सम्बन्ध स्थूल शरीर से है, स्वप्न का सूक्ष्म शरीर से एवं सुषुप्ति का सम्बन्ध इस कारण शरीर से है