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मृत्यु और परलोक यात्रा "जिसे 'कर्म शरीर' भी कहते हैं। यह कारण शरीर ही बीज शरीर है जिससे अन्य दोनों शरीरों का निर्माण होता है। कारण शरीर सभी अर्द्धचेतन का भण्डार है जिसमें मनुष्य की सारी शक्तियाँ और संस्कार संग्रहीत रहते हैं । मनुष्य के सारे कार्य, गतियाँ, व्यवहार और परिस्थितियाँ इसी कारण शरीर के संग्रह से ही आती हैं । यही कारण शरीर मनुष्य का केन्द्र है। यह कारण शरीर सबसे महत्त्वपूर्ण है । इसी से अन्य दोनों शरीर प्रभावित होते हैं। ___इस कर्म शरीर को दिए गए सुझावों का दोनों शरीरों पर आश्चर्यजनक प्रभाव होता है। इसे दैविक सुझाव देने पर वह ईश्वर हो जाएगा। इसी कर्म शरीर पर नियन्त्रण करके मनुष्य अपने भाग्य का निर्माण स्वयं कर सकता है । स्थूल शरीर का निर्माण सूक्ष्म शरीर से होता है जिसकी सामग्री कारण शरीर से प्राप्त होती है। इसकी अभिव्यक्ति की अवस्था सुषुप्ति है जिसमें बुद्धि की समस्त वृत्तियाँ लीन हो जाती हैं तथा सब प्रकार का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। बुद्धि बीज रूप में ही स्थित रहती है।
इस कारण शरीर के भीतर जो आत्मा है वह सूर्य की भाँति है। वह स्थिर है । शरीर ही परिवर्तनशील एवं अस्थाई है। - इस कारण शरीर से मुक्त होने पर ही जीवात्मा का ब्रह्म में लय होता है । इसके रहते वह मुक्तावस्था का अनुभव तो कर सकता है किन्तु ईश्वर से पार्थक्य बना रहता है जो द्वैत की स्थिति है। अधिकांश जीवात्मा यहीं पर रुकी रहती हैं इसीलिए द्वैत को ही अधिक प्रतिष्ठा दी गई है । जीवात्मा की सर्वोच्च स्थिति तो अद्वैत ही है किन्तु उसे प्राप्त करना दुष्कर है। इसका अनुभव मात्र किया जा सकता है।