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४. स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर
(अ) स्थूल शरीर
यह आत्मा पाँच कोषों से आवृत है । ये कोष हैं अलमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय एवं आनन्दमय । जो इन पाँचों कोषों को पुनः आत्मा में लय कर देता है वही " मुक्त" कह
ता है । यह आत्मत्व अव्यक्त है | शरीर, मन और बुद्धि व्यक्त है । आत्मा, मन, बुद्धि और शरीर का संयुक्त रूप ही मानव है । आत्मा जड़ और चेतन दोनों में व्याप्त है । इन दोनों का भेद इन इन्द्रिय विकास से है । जिनमें इन्द्रियों का विकास हो गया है वह चेतन है तथा जिनमें यह विकास नहीं हुआ है उसे जड़ कहा जाता है । यह अलमय कोष ही स्थूल शरीर है जिनका पोषण अन्न से होता है। ये पंचभूत स्थूल होकर स्थूल शरीर का निर्माण करते हैं । इसी स्थूल शरीर के कारण सम्पूर्ण बाह्य जगत प्रतीत होता है
जन्म, मरण, बाल्यावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था इसी शरीर की विभिन्न अवस्थाएँ हैं । शरीर के समस्त कर्म एवं अनुभव इसी शरीर से होते हैं। चेतना का विकास भी इसी के माध्यम से होता है । अध्यात्म साधना का यही एक माध्यम है जिससे जीवात्मा को परमात्मा का ज्ञान होता है । इसलिए यह
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