Book Title: Mrutyu Aur Parlok Yatra
Author(s): Nandlal Dashora
Publisher: Randhir Book Sales

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Page 42
________________ स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर [ ४१ शरीर किसी भी प्रकार तुच्छ नहीं है बल्कि सबसे महत्त्वपूर्ण है । इसे मिथ्या कह कर इसका तिरस्कार भी नहीं किया जा सकता, न इसे व्यर्थ मानकर इसके साथ दुर्व्यवहार करना, उसे सताना, उसका दमन करना, उत्पीड़न करना उचित नहीं है। इसको ईश्वर का वरदान समझ कर इसका सदुपयोग करना है। दुरुपयोग करने पर शरीर दोषी नहीं है। यह जीवात्मा का उत्तम सेवक, सहभागी एवं आज्ञाकारी सेवक है । जैसा इसे रखो रह जाता है । इसे महल में रखो या झोंपड़ी में, मन्दिर ले जाओ या मदिरालय में, यह सब में राजी है । कभी विरोध नहीं करता। इसलिए इसे सजा देना पागलपन ही है। शरीर के कार्यों का दायित्व मन पर है। उस पर नियन्त्रण आवश्यक है । अच्छा, बुरा सब इसी से होता है । स्वर्ग, नरक और मुक्ति में भी यही ले जाता है । सारी साधना मन को काबू में करने की है। (ब) सूक्ष्म शरीर __इस स्थूल शरीर के पीछे जीवात्मा का एक सूक्ष्म शरीर भी है जो इस स्थूल शरीर का कारण है । यह सूक्ष्म शरीर दस इन्द्रियों, पाँच प्राण, पाँच सूक्ष्मभूत, अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार), अविद्या, काम और कर्म से बना है। यह चेतन शक्ति से संयुक्त होकर ही “जीव" कहलाता है । यही सूक्ष्म शरीर वासना युक्त होकर कर्मफलों का अनुभव करने वाला है । जब तक इसे अपने सत्य स्वरूप (आत्मा) का ज्ञान नहीं हो जाता तब तक यह अनादि काल तक जीवित रहता है। इसकी मृत्यु या नाश होने पर ही जीवात्मा मुक्तावस्था को

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