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मृत्यु और परलोक यात्रा ___ईसामसीह के जमाने में फेरिसी लोग मानते थे कि आत्मा भिन्न-भिन्न शरीरों में भटकता रहता है। ईसामसीह ने भी कहा था कि पैगम्बर इलियास ही जॉन वेप्टिस्ट बनकर पुनः आए थे।
पाइथेगोरस प्रथम यूनानी थे जिन्होंने यूनान को पुनर्जन्म का सिद्धान्त दिया।
(य) आत्मानुभव
आत्मज्ञान ही परमात्मा का ज्ञान है । प्रत्येक व्यक्ति शरीर नहीं आत्मा है इसलिए परमात्मा भी वही है। इसी कारण आत्मज्ञान होने पर वह “अहं ब्रह्मस्मि" कह सकता है किन्तु यदि उसका अहंकार शेष है तो वह ऐसा नहीं कह सकता। अहंकार के कारण ही वह जीवात्मा और ईश्वर में भेद देखता है। उसे द्वैत ही दिखाई देता है। तब वह "ईश्वर पुत्र" कहता है। यह भिन्नता जीवात्मा के तल तक की है। शुद्ध आत्मा और ईश्वर में भिन्नता नहीं है। .. ___ आत्मज्ञान के बाद उसके सभी कार्य नाटक की भाँति होते रहते हैं जिनसे वह अलग रहकर दृष्टा मात्र हो जाता है, संसार में जल-कमलवत् हो जाता है। फिर कर्म उससे लिप्त नहीं होते, न बन्धन का कारण बनते हैं । आत्मज्ञान से पूर्व किये गये सभी कर्मों का बन्धन होता है जिनका फल भोगना पड़ता है। आत्मज्ञान से आचरण बदल जाता है किन्तु आचरण बदलने से आत्मज्ञान नहीं होता। इससे जीवन पवित्र बनता है किन्तु आगे की यात्रा आवश्यक है। आत्मज्ञान करना ही धर्म का