________________
२४]
मृत्यु और परलोक यात्रा
शक्ति सबमें बराबर है । कुण्डलिनी शक्ति के जागरण से साधक को पहले जीवात्मा का अनुभव होता है। इसमें उसे भिन्न-२ आत्माएँ ज्ञात होती हैं। यही जीवात्मा का स्वरूप है। इसके बाद आत्मा का अनुभव होता है जो समष्टिगत आत्मा है। यही ब्रह्म का स्वरूप है। कुण्डलिनी जागरण से परमात्मा की थोड़ी-सी झलक मिलती है किन्तु उसे पाने के लिए आत्मा को भी खोना पड़ता है अन्यथा यात्रा यहीं पर अवरुद्ध हो जाती
. अतिन्द्रिय ज्ञान में शरीर, मन, बुद्धि, चित्त, आत्मा, सिद्धियाँ, अहंकार आदि के अनेक कटु एवं लुभावने दृश्य सामने आते हैं। इनमें जहाँ मन ठहर गया वहीं यात्रा अवरुद्ध हो जाती है। जो इन मन, अहंकार आदि को खोना नहीं चाहता वह आत्मा पर ही रुक जाता है। उसकी आगे की यात्रा अवरुद्ध हो जाती है । आत्मा को भी खोने पर उसे "मुक्ति' का अनुभव होता है। यही निर्वाण और मोक्ष है जो जीवात्मा की अन्तिम अवस्था है। यही परमगति है । ___ ऊर्जा का यह कुण्ड अनन्त शक्ति वाला है। इसमें से कितना ही निकालो यह कम होता ही नहीं। इसका सम्बन्ध उस विराट ऊर्जा भण्डार से है जिसमें समस्त सृष्टि का संचालन हो रहा है। वही अनन्त ऊर्जा इस शरीर को निरन्तर प्राप्त हो रही है। इसे खर्च करने पर ही यह प्राप्त होती है अन्यथा नहीं।
(द) आत्मा की अमरता
आत्मा अमर है तथा शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता। यह पुनर्जन्म भी ग्रहण करता है। इसका