________________
[ २१
ब्रह्म, आत्मा और शरीर
वैभव विद्यमान है । उसको जाग्रत करने की विधि योग तथा तप है क्योंकि वह ऊर्जा सुप्त पड़ी है। उसे जाग्रत करके ऋद्धिसिद्धि प्राप्त की जा सकती है तथा स्वर्ग और मुक्ति की भी सम्भावनाएँ हैं ।
ब्रह्म और जीवात्मा की भिन्नता अहंकार रूपी मिथ्या आवरण के कारण ज्ञात होती है । इस बाधा के हटते ही यह प्रतीति हो जाती है यह आत्मा ब्रह्म ही है । इसे परमात्मा से भिन्न मानना मिथ्या धारणा है । भिन्नता का दूसरा कारण मन है जो भिन्न संस्कारों वाला है । इसी कारण जीवात्मा और परमात्मा में पुत्र एवं पिता का सम्बन्ध हो जाता है । यह जीवात्मा ईश्वर से भिन्न गुणों वाली हो गई है | अध्यात्म इसी कारण आत्मा को ही महत्व देता है जो शाश्वत है |
ये जीवात्माएँ ही अनन्त हैं जो हर व्यक्ति की भिन्न-भिन्न हैं किन्तु शुद्ध आत्मा एक ही है । आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व अहंकार एवं अज्ञान के कारण है जिससे प्रत्येक व्यक्ति की भिन्न-भिन्न आत्माएँ मानी जाती हैं।
(ब) आत्मा और शरीर
है, आत्मा अदृश्य है। वह बिजली से चल आत्मा है जिसके कारण और शरीर भिन्न नहीं हैं
शरीर और आत्मा एक ही सत्य के दो छोर हैं। शरीर दृश्य पंखे में बिजली दिखाई नहीं देती किन्तु रहा है, उसी प्रकार शरीर के भीतर शरीर गतिमान हो रहा है । आत्मा बल्कि एक ही अस्तित्व की दो तरंग अवस्थाएँ हैं जैसे पदार्थ और ऊर्जा । शरीर उस अदृश्य आत्मा
1