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वार्तोपर अधिक भार दिया जिनका असर समाजपर दृढ़ता से विस्तारित हो गया (१) प्राणी मात्रको जीने का एक बरोबर हक है इसलिये जीवको जीने दो (Live and Let Live ) का सिद्धान्त. और स्वर्क कल्याणके लिये कोई दूसरी बाहिरी शक्तिपर अथवा उसके प्रसाद ( favour ) पर आधार तथा अपेक्षाको न रखते स्वशक्तिके अवलम्बन करनेका सिद्धान्त । उस युगमें इन दो सत्योकं प्रकाशकी अत्यन्त आवश्यक्ता थी जो कि ये सत्य बिल्कुल सादे हैं और एक बालकसे भी अज्ञात नहीं है और सवकी विदित हैं तो भी जब उन सद्भावनाओका लोप होनेवाला होता है तत्र सम्पूर्ण देश अथवा सम्पूर्ण जगत्को अक्सर उसका एक साथ विस्मरण हो जाता है और अथवा वह दूसरी विरोधी भावनाओकी सत्तासे व जाता है उस समय भी ऐसा हाल हुआ था । लोगोने - आत्मकल्याणके मुख्य निश्चयकी अवगणना की थी। लोग स्वहित साधनेके लिये छोटेसे बड़े असंख्य देवदेवियोंको संतुष्ट रखनेके लिये प्राणी हिंसायुक्त यज्ञ यगादिकीके भ्रमजाल में पड़ गये थे । इस हिंसा प्रधान धर्मके नामसे चलती क्रियाओंके सामने महावीर प्रसुने सख्त विरोध किया और जीवदयाका सिद्धान्त फैलाया जिसके लिये अनन्त मुगे प्राणी अपने मुक वाणी में आज भी उन प्रभुका उपकार गाते हैं ।
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