Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

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Page 86
________________ [१४] वह मशक्कथा। उसने संगमके उपसर्गसे प्रमुको बचानेका कुछ उपाय किया होता तो उल्हासमुको उनका पूर्णत्व. प्राप्त करनेमें वह मन्तरायभूत होता इसलिये निरुपाय दुःखित चित्तसे इन उपसगौकी. पराम्पराको उसके लिये देखना ही वदा था और दूसरा उसके पास कोई उपाय नहीं था। संगमने प्रमुको जो कष्ट दिये थे उनमेंसे हमारे लिये एक अत्यन्त सुंदर शिक्षण उदनवित होता है। आदर्श पुरुषों के जीवनमें सबसे अगत्यका शिक्षणीय विभाग मात्र ही उनके महत् कर्तव्य नहीं हैं। परन्तु उनके छोटे परोक्ष प्रसंग मो अत्यन्त बोधदायी होते हैं। संगमने प्रमुको निस क्रमसे क्लेश दिया था उसपरसे मालम होता है कि वह मनुष्यके हृदयके गुह्य मौका उत्तम ज्ञाता होना चाहिये । प्रथम उसने प्रमुको ध्यानसे भ्रष्ट करनेके लिये शारीरिक वेदना देना शुरू किया और ज्यों २ उसमें वह..निष्फल होता गया त्यों २ वेदनाको प्रबलतर और तीव्रतर करने लगा। मनुष्यकी करपकशक्ति विनाशके जो २ साधन योजित कर सकती है उसने उन सरको प्रमुके ऊपर लगानेमें कुछ भी कमी नहीं रखी। आखीरमें एक लोहेका भारी वजनदार गोला उठाकर उसको प्रमुके सिरपर फेंका । इसपर यह प्रसिद्ध है कि उसके आघातसे प्रमु जानु पर्यन्त पृथ्वीमें घुस गये । इस परसे भी उनके दिन्य तनुको हानि नहीं पहुंची। तत्र यदि उस स्थानपर संगमसे न्यून मतिप्रकर्षवाला देव अथवा मनुष्य होता तो अवश्य निराश होकर वापिस आता। परन्तु संगम मनुष्यके अन्तःकरणका गहरा अभ्यासी था। मनुष्यके

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