Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

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Page 87
________________ हृदयकी निर्वल बाजुओंको वह पहिचानता था। कौनसे ममेका आश्रय लेनेसे सामान्य मनुष्य अपने वशीभूत होगा आदि रहस्योंको वह भली प्रकार जानता था । अक्सर महान् मनुष्योंके भी हृदयके कुछ अंश निर्बल और स्पर्शवेद्य होते हैं। यदि उसका उस ओर स्पर्श किया जाय तो वे शीघ्र ही हार जाय । जब संगमने यह मालूम किया किकष्टसे प्रभु अपने क्रमपरसे चलित नहीं होंगे तब उसने प्रभुके शरीरपरसे अपना व्यापार छोड़ दिया और मानस प्रदेशपर अपनी युक्तियाँ अजमाने लगा और उसके साथ २ उपसर्गों का स्वरूप भी बदल दिया । उसने देखा कि कष्ट वा असाताका जोर प्रमुको जीतनेमें समर्थ नहीं हैं। इसपरसे उसने यह निश्चय किया कि प्रतिकूल और दुःखद उपसर्ग देनेसे मनुष्य उल्टा अधिक उन्मत्त और सावधान हो जाता है और अपने व्रत अथवा वर्चसको कायम रखनेके लिये चतुरतासे बचाव कर लेता है। यह प्रत्यक्ष सत्य है कि प्रत्यक्ष सामने हमला करनेसे दुश्मन सम्हल जाता है और बचाव बहादुरी और होशियारीसे कर सकता है। इसपरसे संगमने अनुकूल उपसर्गीका मार्ग पकड़ा। यह उपसर्ग ऐसा • था कि वहां प्रमुसे कुछ न्यून हृदयवाला तथा न्यून शक्तिवाला होता तो वह उसके जालमें अवश्यमेव आजाता । संगमका प्रयत्न प्रभुको उनकी परमात्म स्वरूप प्रतिकी एकतामेंसे भ्रष्ट करनेका ही था और इसलिये उसने इन अनुकूल उपसर्गोंको आखिरमें प्रबलतासे परीक्षा करनेके लिये रखे थे। वह यह बात अच्छी तरहसे जानता था कि दुःखके प्रसङ्गमें हढ़ रहनेका मनुष्य हृदयका वेग स्वाभाविक होता है परन्तु सुखके उपकारणमें और प्रलोभनोंकी सामग्रीसे

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