________________
[८] इस पातको ध्यानमें नहीं रखा और संगीतको जारी ही रखवाया। आखिरमें नृपति जगकर प्या देखता है ? कि जो संगीत रातके पहिले पहरसे शुरू हुआ था वही अभी सूर्योदय तक बराबर हो रहा है। उन्होंने गायकोंसे पूछा तो उन्होंने प्रार्थना की कि शय्यापालककी आज्ञानुसार हम कार्य कर रहे हैं। इससे वासुदेवको अपनी आज्ञाकी अवगणना करनेसे अपने अनुचरकी रागांधता पर क्रोध आया और उसको बुलाया। उसने जिस इन्द्रियको तृप्त करनेके लिये अपने स्वामीकी आज्ञाका उल्लंघन किया था, उस इन्द्रियके उपयोगका सदन्तर नाश करनेका हुक्म दिया। उसके कर्णके सूराखमें शीशेका गर्म रस डालकर वे वंदर दिये गये। यह निर्दयतासे भरा हुआ कार्य करने में पूर्वभवमें वासुदेवके शरीरस्थ और इस समय प्रमुके शरीरमें विराजमान आत्माने जो प्रचंड और उग्र भावका सेवन किया था उसका बदला भोगनेका भनिष्ट प्रसंग प्रमुके लिये नजदीक आगया। प्रमुने पूर्वभवमें अपने राजत्वके अमिमानके कारण सहन कोपोत्तेजक कारणसे अपने सेवकके कर्णमें शीशा डलाया था यह बहुत ही भयकर काय था। त्यों इस भवमें गढ़रिया सहज बैलोंका ठीक पता प्रमुकी ओरसे न पानेसे कुपित होगया और प्रमुके कानोंमें शरकर वृक्षकी मेख ठोक दी। जिससे कि उनके कानोंमें इन मेखोंके अस्तित्वकी किसीको ख़बर न होने पावे अथवा वे वापिस न निकले इसलिये मेखोंका जो भाग . बाहिर बचा था उसे काट दिया । निरागी प्रभु इस बलवान चलित