Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

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Page 108
________________ [ ८६.] नहीं होता है । परन्तु जहाँ ऐसा नहींहोता है-अर्थात् एक पक्षको चुपचाप शिक्षाही सहन करनी पड़ती है वहां यह शिक्षा दोषके . प्रमाणसे अधिक होती है तो उसका वैर शिक्षा सहनेवालेकी आत्माकी सूक्ष्म भूमिकापरसे उचलकर अधिक होजाता है और उसका फल आखिरमें बहुत बुरा होता है। . प्रत्याघातके सामने यदि मनुप्यको अवसर मिले तो वह वैरभाव कुछ स्थूल कार्यद्वारा शिथिल पडजाता है परन्तु ऐसा जहां नहीं होता है, वहां वैरवृत्तिका बल समक्षपक्षकी सूक्ष्म भूमिका ( astral plane) उपर एकत्र होता है और उसके परिपाकका अवसर आनेपर, उस शिक्षा करनेवालेसे भयङ्कर बदला लिये विना उस रैरवृत्तिकी शांति नहीं होती और वात भी ऐसी है अतएव बहुत बुद्धिमान राजा दुश्मनके कैद मनुप्यो प्रति अच्छा वर्तन रखते हैं और उनकी अच्छी तरहसे सेवा सम्हाल करते हैं। यदि वह उस समय चाहे तो सर्व मनुप्योंको मार सकता है क्योंकि उसके अन्दर उनको मारनेका सामर्थ्य है। उसके इस वर्जनके सामने वे लोग अपना हाथ नहीं बता सकते हैं अतएव वह ऐसा करने में महान अनिष्ठ फल देखता है। सत्ताहीन रंक मनुप्योंको दुःख देनेमें अथवा उनको उनके अपराधके प्रमाणसे अधिक शिक्षा करनेमें जो भयंकर अनिष्ठता रही हुई है उसको आत्मज्ञ पुरुष ही अच्छी तरहसे समझ सकते हैं। सूक्ष्म भूमिकापर उस वैरका रुक कैसे पोषण पाकर बढ़ता है, उसका स्वरूप जो जानते हैं, वे जगत्को वारम्वार ऐसे कार्यसे सचेत रहनेकी सलाह देते गये हैं । हमारी शिक्षाके सामने विरोध करनेको सत्ताहीन प्राणियोंके

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