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मोह ... विरक्तता बता सकते हैं वे ही विश्वका कल्याण कर सकते हैं और अपने चारित्र रूपी दिव्य औषधसे जगतके भव्य जीवोंके. आत्मिक विचार मिटा सकते हैं। शान्ति और क्षमाके साथ क्रोध.. की टक्करो क्रोधका पराभव होता है। इस बातको प्रभुने अपने दृष्टान्तसें जगतको दर्शा दिया है।
वीरप्रभु उस भयङ्कर सर्पके दिलके पास आये और नासिकाके अग्र भाग पर नेत्रको स्थिर करके कायोत्सर्ग ध्यानमें खड़े हो . गये। थोड़ी देरमें साप बिलमेंसे वाहिर जाया और आते ही क्या देखता है कि एक पुरुप शंखुकी नाई स्थिर खड़ा है ? देखते ही क्रोधसे लाल हो गया। वह अपने फणोंको फैलाता हुआ, विषाग्निको फैकता हुआ, भयङ्कर फुन्कारसे दरिको फेकता हुभा प्रभुके . पास आकर उनके अंगुटको काटा। परन्तु उसके जहरका असर उनके एक रोममें भी नहीं हुआ और वे अपने कायोत्सर्गसे च्युत 'न होकर उसीके अंदर लीन रहे । शीघ्र ही उस कोषके मूर्तिरूप सर्पने प्रभुके सामने दृष्टि की तो उसको मालूम हुआ कि उस पवित्र बदन पर जरा भी क्रोधकी प्रति छाया न थी अलावाइसके उनके मुखकी प्रसन्नतामें जरा भी न्यूनता नहीं हुई थी। प्रभुके मुख मुद्रापर अत्यन्त कांति, सौम्य तथा क्षमा शीलताको अंकित देखकर स्तब्ध हो गया। प्रभुकी उपशांत रसमयता उसके हृदयमें सक्रांत हो गई। प्रभुके शान्ति बलसे उसका क्रोध वलका पराभव हो गया । प्रभुने उसकी कपोल ज्वाला पर क्षमा जल डाला इससे वह स्वयम् बुझ गई । उसको. सुधार पर आते देख प्रभु चोले हे · चंडकौशिक ! समझ!! समझ ! ! ! मोह. क्श न हो।