Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ (२२) नहीं है। कदापि ऐसे जीवोंको हम सुधारके बाहिर वर्तमान कालमें गिन सकते हैं। परन्तु जिसमें कुछ जोश-पाणी वीर्य-शौर्य है वे उसके चाहे जिस शुभाशुभ परिणाममें प्रशंसा करने योग्य हैं। कारपः कि उनके अशुभ पर्यायमें भी वे जिस द्रव्यसे बने हैं वह द्रव्यशक्ति क्षयोपशम भावमें आत्माको प्राप्त होता है और निमित्त मिलेपर यथेष्ट तौर पर विस्तारित हो सकता है। प्रभु इस बातको अच्छी तरहसे जानते थे अतएव उन्होंने वहाँ होकर जाना योग्य समझा। यदि ऐसा ही होता वे उस रास्ते होकर जानेकी बिलकुल आवश्यक्ता नहीं समझते । बड़े पुरुषोंकी प्रवृत्ति दशा स्वपरको कल्याणकारी होती है। प्रभु यह जानते थे कि किसी भी शक्तिकी विकत अवस्था ही उस प्राणीके अयोग्यताका लक्षण नहीं है। सिर्फ उसके विकारका पराभव · करके उसको सन्मार्गमें ले जानेकी अपेक्षा रहती है। जिस नदीके जल प्रवाहका बल सारे शहरको खींचकर ले जानेको समर्थ है उसमेंसे यदि विद्युत पैदा की जाय तो उससे हजारों मिले चलने जितनी शक्ति पैदा हो जाती है इसी तरह द्रष्टि विष सर्पकीजो क्रोध ज्वाला उड़ते हुए पक्षीको भी भस्मीभूत करनेको समर्थ थी, उसी ज्वालाको बदलकर शान्तिमें परिणमन करते ही वह मोक्ष सुखको सहजमें दिला सकती है उसमें जितनी अनिष्ट करनेकी शक्ति है उतनी ही शक्ति उसमें कल्याण करनेकी है। सिर्फ इसको इष्ट कार्यकी ओर कैसे लगाना चाहिये इसके लिये विलक्षणता और धैर्यकी अपेक्षा रहती हैं। प्रभुने इस कार्यको सांगोपांग किस तरह ..पार किया यह बेशक हमारे लिये जानने योग्य बात है। उन्होंने जिस तरहसे

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117