Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

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Page 62
________________ [१०] परम इतनी अधिक समानता है कि दोनोको एक दूसरेसे शाबद ही पडते उतरते माने जा सके । एक स्थान पर फोलादके शसका उपयोग होता है तो दूसरे स्थानपर वाणीलप हरीयारका ही उपयोग होता है । एकका आघात स्यूल शरीर होता है, तब दुसरे का प्रहार हृदयके मम माग पर होता है । फर्क इतना ही है कि जब एकका था न्यूनाधिक काळमें ही रुनता है तब दूसरेका मार्मिक था मरण पर्यन्त और उसके बाद मव प्रवासमें मी. अन्यक्तपनामें कायम ही रहता है। अपने निम्नय पश्चात् चाहे वह योग्य हो अथवा अयोग्य-दसरेके हृदयमें बलात्कारसे उतारनेका प्रयत्न करनेवाला मनुष्य-अपना तथा समक्ष मनुष्यका अहित ही करता है। कभी अपना निश्चय उत्तम तथा हितकारक हो परन्तु समक्ष मनुष्यके हृदयमें उसकी जबदस्ती उसाना अयोग्य है ऐसी प्रवृति उल्टा उसको उम उत्तम निश्चयसे अधिक और अधिक विमुख, रखती है। इतना ही नहीं परन्तु उस समक्ष मनुष्यके हृदयमें उस निश्रय प्रति जो एक दफा दुराग्रह ढीभूत हो जाता है तो वह उसको सीधेल्पमें यथायोग्य तौर पर देखना भी छोड़ देता है। .. ___ भयंकर शास्त्रोंसे को युद्ध होता है और उसके द्वारा जो मनुष्य, संहार होता है ये जितना अनिष्ट है उतना ही जो वागीद्वारा युद्ध होता है, अनिष्ट है अथवा इससे भी अधिक निंद्य है क्योंकिस्थूल आघातका असर स्थूल देहमें ही. परिसमाप्त हो जाता है, परन्तु 'वाणीके मार्मिक प्रहारका असर भात्माके अन्तःस्य प्रदेश. पर स्थायी संस्काररूपमें दीर्घकाल तक रहता है। हरएक लिये यह

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