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[५४ पूर्वमें आसाम, दक्षिणमें और पूर्व बंगालमें उनका निवास होगा यही अनुमान होता है। कारण आर्य प्रदेशमेंसे म्लेच्छोंके देशमें और म्लेच्छोंके प्रदेशसे आर्योंके देशमें प्रम थोड़े ही अमें आ सकते थे । नववाँ चतुर्थमास अनार्य भूमिमें पूरा करके शीघ्र ही वहांसे प्रभु सिद्धार्थपुरमें आनेकी हकीकत सुप्रसिद्ध है। . . . इन विहारके प्रसंगोंमें गोशाला प्रमुख साय ही था वे एक प्रसंगपर कूर्म नामक गांवके नजदीक आये वहां गोशाला एक वैशिकायन नामक तापससे मिले। गोशाला उस ध्यानस्य और सूर्यके सामने हाथ ऊंचे रखकर त्राटक किये हुए तपस्वीको उसकी क्रियाका मर्म उद्धतासे पूछने लगा.तो मी मुनिने बहुत समय तक उन अपमान भरे हुए शब्दोंको सहन किये और कुछ प्रत्युत्तर नहीं दिया। गोशालाको इतने पर ही संतोप. नहीं हुआ। उसने तापसके आचरणसे अत्यन्त उच्च प्रकारके तपश्चरणका प्रमुके अन्दर अनुभव किया था अतएव इस एकान्त कष्ट प्रति उसको अरुचि 'हो यह बात स्वामाविक थी सभ्य और विनीत समाजके परिचयमें मार्य मनुष्यको जिसतरह जंगली मनुष्यका. रहन सहन अच्छा नहीं मालूम होता है त्यों महावीर प्रमुके अत्यन्त प्रौढ़ चरित्र
और उत्कृष्ट भोगके सम्बन्धमें आनेवाले गोशालाको इस तापसकी ऐसी वाल तपस्वीताका अभिमत म हो यह भी स्वाभाविक ही था। परन्तु उसने जिस तुच्छतासे तापसको सम्बोधित किया था वह बिल्कुल अयोग्य था। उसने अभिमान पूर्वक उसको पूछा "अरे तापस ! तू क्या तत्व जानता है ? इस तेरी लम्बी जटासे हमें यह अच्छीतरह मालूम नहीं होता किन्तु स्त्री है या पुरुष ?
कष्ट भोगके समान हो यह
किया था