Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

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Page 75
________________ [48] 'जिसके लक्षण उत्तम हो वह आर्य चाहे वह वार्गिक ं दृष्टिसे कोई श्री क्यों न हो और हीन संस्कार युक्त मनुष्य' 'म्लेच्छ' शब्दले सम्बोधित किये जाते थे । अनार्य शब्द जहाँ २ काममें लिया जाता या वहाँ पर बहुत करके वह अशिष्ठताका हो सुचक था अर्थात् 'म्लेच्छ' शब्दके अर्थ में काममें लिया जाता था। 'म्लेच्छ' 'मर्य भावना के विरोधी और द्वेषी थे और उनके हरएक कार्यमें विन डालने का प्रयत्न करते थे । प्रथम वे बहुत आयकी वस्तीमें रहते ये परन्तु ज्यों २ आर्योंकी सत्ता बढ़ती गईं त्यों २ उनको दूर प्रदेशों में निकाल दिये गये । महावीरके युगमें म्लेच्छ बहुत करके मंगध, राजग्रही, वैशाली आदि सभ्य प्रदेश समूहकें पूर्व और दक्षिण में समुद्र के किनारे बसते थे । महाभारतकी आखिरी आवृत्ति हुई तव महावीर प्रमुके काल पश्चात् करीब दौ सौ वर्षमें उपरोक्त प्रदेश अनार्य प्रदेशके तौरपर पहिचाने जाने लगे । ये म्लेच्छ प्रदेश आर्य प्रदेशसे बहुत दूर नहीं हैं और ऐसा ही हमें प्रतीत होता हैं ! " × The Dravidians and the Vangas in the farthest South and the farthest east wore still looked upon as nou-Aryan people, which the people of Arya-varta delighted in calling themselves upon their Moral superiority to other, races. (Epic India). अर्थात् - दूरतम दक्षिण और पूर्व प्रदेशस्थ द्राविड़ और बंग ( पूर्व बंगाल के लोग अनार्य गिने जाते थे और आर्यावर्त्तके लोग अपने आपको आर्य शब्दसे सम्बोधित करनेमें आनन्द मानते थे और दूसरोंसे अपनी आध्यात्मिक उच्चताका अभिमान रखते थे ।

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