Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

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Page 67
________________ [१५] ग्रहण किया था वह बिलकुल एक तरफी था जो आखिरमें अनिष्ट निकला । अपनी मति कल्पना और अज्ञानसे जो कुछ ग्रहण किया जाता है वह अक्सर अहितकर हो जाता है। उसके लिये गोशालाका एक योग्य दृष्टान्त है। वह कमी २ भाविके बननेवाले प्रसोंके विषयमें पूछा करता था और प्रमु जो कुछ उत्तर देते थे उनको वह योग्य मानता था और उन्हीके आधार पर उसने यह निश्चय कर लिया कि जो कुछ बननेवाला है उसमें मनुष्यका प्रयत्न किसी कालमें कुछ नहीं कर सकता है और यही नियतिवाद । अनेक कारणोंसे उसके हृदयमें दृढ़ हो गया जिसको उसने जीवन पर्यन्त माना और इसी कारणसे वह थोड़े ही वर्षों बाद जैन धर्मसे विमुस हो गया और अपने स्वच्छंदको विस्तारित करने लगा। यही मुल्क कारण था जिससे उसके असल निध स्वरूपको जैन ग्रन्थकारोंने दर्शाया है हम यहाँ पर इतना जरूर कहेंगे कि वह बुद्धिमान अवश्य था इतना ही नहीं साथमें वह पुरुषार्थी भी था अतएव उसने कई तरहकी विधाएं सम्पादन की थीं परन्तु जिस उलटे मार्ग में वह पड़ गया था उसीको वह अपने हृदयमें सबसे अधिक स्थान देता था। उसने अपने आप जो सिद्धान्न घडे थे वे सर्वथा जैनधर्मसे विपरीत थे। परन्तु यहांपर हमारा कहनेका यह आशय नहीं है कि उनके अंदर ग्रहण करने योग्य बातें बिलकुल नहीं थी अवश्य होगी। उसमें कुछ बातें ठीक होगी और कुछ २ लोकदृष्टिको रुचिकर भी होगी चाहे बाहिरी दिखावटी ही क्यों न हो । यही सबब था कि वह अपने सिद्धान्तों द्वारा अलग धम्मको स्थापित कर सका था।गोशालाको जिस रूपमें हमारे जन ग्रंथकारोने हमारे सामने रुगु किया है उसी रूपी

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