Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ [ . ४६. 'उर्मका होना स्वाभाविक है। क्योंकि पहिले वह प्रभुका शिष्य हो चुका था फिर उनको छोकर उनका प्रतिपक्षी हो गया और उनके सिद्धान्को लोप करनेका ट्रकने लग गया। कई तरह के द्वारा उसने प्रभुकमिद्धान्तोको लोन कनेका प्रयत्न किया होगा प ज़ो स हैं कैसे अपस्थ हर सकते है । वे ज्योंका त्यों कान रहते हैं। रु के आगे झूठ कभी नहीं टिक सकता | श्रीमद् कलिकाल स हेमचंद्रचार्यनेनेालका जो वर्णन किया है उपर यह फ मालून होता है कि उसके तुत ठीक वैसे ही होगे । उ ने अपने प शांत द्वारा एक ऐसी शक्ति प्राप्त की जिसके द्वारादह अपने अनुया या संख्या वृद्धि करने लगा वह शक्ति क्या थी ? उसको जन को इक दिल चाहता होगा 'तेजोलेश्या'द्वारा उसने अपने अनुयायी ओकी संख्या बढाई निमको स्वयम् हमारे च भीत हैं श्रीमद् हेमचन्द्राचार्यने इसके लिये जो उल्लेख किया है वह ठाक हे कारण कि वह स्वयम् प्रमुक हसी मजाक था और उनपर तेजोलेश्या फेंकता था कि वे ध्यान से विचलित हो हो जाय । *एकदका किसी वासुदेवके मंदिरमें प्रभुने रात्रिका किया वहां पर गोशाला मी आया । जिस समय वह आया था प्रभू ध्यान मग्न 'थे । गोशाला में एक अवगुण था कि वह मनाक किया करता था और * इंस पुस्तक मूल लेखक श्रीयुत सुशीलने अपने मूल पुस्तक गुजरातीनें लिखा है कि उस समय वौद्ध प्रन्थोंमें ये बातें नहीं प्रतित होतीं। इसका साफ़ और स्वच्छ उत्तर यही है कि उसको जितना द्वेष जैन धर्मसे होगा उतना बौद्धोंसे न होगा और न यह अधिक उनके प्ररूपमें भाषा होगा जितना कि महावीरके प्रसनमें भाषा है और वह महावीर का ही शिष्य था। " 1 "

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117