Book Title: Mahavira Jivan Vistar
Author(s): Tarachand Dosi
Publisher: Hindi Vijay Granthmala Sirohi

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Page 60
________________ [३८] ऐसी इच्छा मी एक तरहको निर्वलता है और वह मनुष्य हृदयदे संठनके अज्ञानको सूचित करनेवाली हैं। सारी दुनियांने विवाद रहित विषय पर कभी मतभेद जाहिर नहीं किया और भविष्यमें नहीं करेगी। कहा जाता है कि उनकी पहिली देशना सर्वथा खाली गई थी अर्थात् उनके उपदेशक असरले एक पी अन्तःकरण चलित नहीं हुआ था तो मी प्रमुने इस परसे दुनिया हितकी चिन्ता नहीं की और न उसे किसीकों जाहिर की। आजकल मतभेद और भनेक संप्रदायका वाह चलता है त्यों उस समयके देशकालके स्वरूपके आश्रित प्रवाह अवश्यमेव चला होगा कारंण कि मनुष्य इत्यका संगठन सब ही देशकालमें एक तरहका रहता है-सिर्फ उनके उपर प्रचलित भावनाओंकी छाप ही पड़ती है। आनन्द हम अपने सामने मूर्ति पूजक और मूर्ति निंदक ये दो तरहके कैम्प एक दूसरेके. आमने सामने स्थापित देते हैं और सुधार करनेवाली और सना-. तनियोंकी छावणी अपनी र हदको वाकर सामनेशली छावणीमेवाणी रूप गोले फेंकते रहते हैं। अस संपथके भनुसार उस समपं भी ऐसा ही अवश्यमेव था । मूर्ति माननेवाले ऐसी चिन्ता करते हैं कि मूर्ति नहीं माननेवालोंका प्रमुके यहां कितना बुरा हाल होगा उसको हम इस लेखनी द्वारा नहीं प्रदर्शित कर सकते हैं और हर तरहके यत्नसे वर्तमान अंधकार प्रदेशमैं मूर्ति पूजाको प्रकाशमें लानेको प्रतिक्षण सनल नयनसे प्रार्थना करते हैं इनमेंका कुछ भी महावीर प्रमुके उपदेश प्रवृत्तिमै न था। मृत्तिके विरोधी .. . प्रमुसे प्रार्थना करते हैं । हे नाथ ! शिमलासे लंगाकर शेतुषष : . रामेश्वर. तक और द्वागरकासे लाकर मासामके पूर्व कोने तक' .

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